विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप

आरबीआई मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप से दूर!
पिछले कुछ महीनों से डॉलर की बिकवाली करने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये में गिरावट थामने की मुहिम पर फिलहाल विराम लगा सकता है। भू-राजनीतिक हालात स्थिर होने के संकेत मिलने और कच्चे तेल के दामों में नरमी को ध्यान में रखते हुए आरबीआई मुद्रा बाजार में सीधे हस्तक्षेप से दूर रह सकता है। कच्चा तेल 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने के बाद अब लगातार निचले स्तर पर आ रहा है।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से सितंबर के बीच आरबीआई ने डॉलर की शुद्ध खरीद की थी मगर उसके बाद अमेरिकी मुद्रा की बिकवाली शुरू कर दी। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी के दौरान केंद्रीय बैंक ने 36.6 अरब डॉलर की शुद्ध खरीद की है। वर्ष 2020-21 में आरबीआई ने 68 अरब डॉलर की शुद्ध खरीद की थी।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से आरबीआई मुद्रा बाजार में लगातार हस्तक्षेप कर रहा है। यूक्रेन संकट के बाद वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल का भाव काफी ऊपर चढ़ गया था। विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप भारत तेल की कुल खपत के 80 प्रतिशत हिस्से का आयात करता है। अगर आरबीआई रुपये का अवमूल्यन रोकने के लिए कदम नहीं उठाता तो कच्चे तेल के भारी आयात की वजह से देश को काफी नुकसान होता। 7 मार्च को अमेरिकी मुद्रा डॉलर की तुलना में रुपया 76.97 डॉलर प्रति बैरल के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। हालांकि डॉलर खरीदने के आरबीआई की मुहिम से रुपयाकरीब 1.5 प्रतिशत संभल चुका है। मुद्रा बाजार में रुपया संभालने के लिए आरबीआई के हस्तक्षेप और 8 मार्च को 5 अरब डॉलर के स्वैप ऑक्शन (डॉलर की बिक्री और कुछ समय बाद वापस इसकी खरीद) से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 9.6 अरब डॉलर कम हो गया। 11 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में 11 अरब डॉलर की कमी इसकी मुख्य वजह रही।
सी आर फॉरेक्स के प्रबंध निदेशक अमित भंडारी कहते हैं, 'विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में करीब 11 अरब डॉलर की कमी आई जिनमें 5 अरब डॉलर स्वैप ऑक्शन की वजह से हुआ। कुछ मिलाकर इस सप्ताह के दौरान आरबीआई ने 6 अरब डॉलर की बिकवाली की होगी। मगर इसी अवधि के दौरान डॉलर में आई तेजी पर विचार नहीं करें तो आरबीआई ने 4.0 से 4.5 अरब डॉलर से कम की बिकवाली नहीं की होगी।' विश्लेषकों के अनुसार आने वाले समय में केंद्रीय बैंक डॉलर की बिकवाली या लिवाली दोनों से दूर रह सकता है। कोटक सिक्योरिटीज लिमिटेड में डीवीपी (करेंसी डेरिवेटिव्स ऐंड इंटरेस्ट डेरिवेटिव्स) अनिंद्य बनर्जी ने कहा, 'आरबीआई तत्काल डॉलर की खरीद नहीं करेगा। मगर यह भी तय है यह इसकी बिकवाली से भी दूर रहेगा। मुझे लगता है कि आरबीआई अब दोबारा तभी डॉलर बेचेगा जब रुपया फिर तेजी से फिसलने लगेगा।' महंगाई के मोर्चे पर आरबीआई के लिए एक अच्छी बात यह है कि कच्चे तेल के दाम बढऩे के बावजूद आरबीआई ने पेट्रोल या डीजल की कीमतें नहीं बढ़ाई हैं। बनर्जी ने कहा, 'कच्चा तेल 100 रुपये प्रति लीटर तक पहुचने के बाद सभी जिंसों की कीमतों में इजाफा हो रहा है। इससे भी महंगाई का जोखिम भी बढ़ता जा रहा है। उस स्थिति में आरबीआई महंगाई का असर कम करने के लिए रुपये में मजबूती करने के उपाय कर सकता है।'
‘रुपये को बचाने की कीमत’- हर हफ्ते $3.6 बिलियन गंवाए, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में एक दशक में सबसे बड़ी गिरावट दिखी
जनवरी के पहले सप्ताह में भारत के पास 633 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जिसमें अब तक 82 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट के संकेत मिले हैं. विदेशी मुद्रा घटने का मतलब है कि आरबीआई रुपये की लगातार गिरावट पर काबू पाने के लिए डॉलर बेच रहा है.
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साप्ताहिक स्टेटिस्टिकल सप्लीमेंट के मुताबिक, 9 सितंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 550.8 अरब डॉलर था. ये 2020 के बाद सबसे कम है, जब यह आंकड़ा 580 अरब डॉलर पर पहुंच गया था.
जनवरी के पहले सप्ताह में भारत के पास 633 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जिसका मतलब है कि इस कैलेंडर वर्ष में अब तक 82 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है जो कि पिछले एक दशक में सबसे अधिक है.
ग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट
विदेशी मुद्रा भंडार पिछले सात माह में 82 अरब डॉलर घटा चुका है, और इसमें से लगभग आधा नुकसान पिछले तीन महीनों में हुआ. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जून में 12.7 अरब डॉलर, जुलाई में 14.4 अरब डॉलर और अगस्त में 20 अरब डॉलर घटा. जून के पहले हफ्ते के बाद से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 47 बिलियन डॉलर यानी करीब 3.6 अरब डॉलर प्रति सप्ताह की दर से गिरा.
2022 में इस दर पर कमी संभवतः 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट (जीएफसी) के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट हो सकती है. पिछले महीने अपने बुलेटिन में आरबीआई ने उल्लेख किया था कि जीएफसी के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 70 बिलियन डॉलर गिर गया था.
आरबीआई के अर्थशास्त्रियों ने अपने विश्लेषण में अनुमान लगाया था कि जुलाई अंत तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 56 अरब डॉलर घट गया था, साथ ही उल्लेख किया कि इसमें से 20 अरब डॉलर स्वैप सेल के कारण घटे थे—जिसका मतलब है कि यह मुद्रा आरबीआई के पास वापस लौट आनी थी. मौजूदा समय में अगर स्वैप सेल को हटा दिया जाए तो भी वास्तविक गिरावट 63 अरब डॉलर से कुछ अधिक हो सकती है.
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एक दशक में सबसे ज्यादा कमी
पिछले 10 सालों की तुलना में यह कमी भारत में अब तक की सबसे तेज गिरावट है. कैलेंडर वर्ष 2011 (0.6 अरब डॉलर), 2012 (1.7 अरब डॉलर), 2013 (1.8 अरब डॉलर) और 2018 (13.28 अरब डॉलर) भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के घटने के गवाह हैं—लेकिन यह गिरावट उनके आकार की तुलना में मामूली थी.
बाकी सालों में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दर्ज की गई है और इसमें से वर्ष 2020—जब सारी दुनिया कोविड-19 महामारी से प्रभावित रही—सबसे अधिक लाभकारी रहा. उस साल भारत की विदेशी मुद्रा संपत्ति में करीब 119 अरब डॉलर (2019 के अंत में 461 अरब डॉलर से बढ़कर 2020 के अंत तक 580 बिलियन डॉलर) की वृद्धि दर्ज की गई. 2021 के अंत तक, आंकड़ा 52 अरब डॉलर बढ़कर 633 अरब डॉलर पर पहुंच गया. पिछले साल 3 सितंबर को भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को 642.45 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर देखा था.
ग्राफिक: रमनदीप कौर | दिप्रिंट
ऐसा क्यों हुआ?
विदेशी मुद्रा में कमी का मतलब है कि आरबीआई रुपये के गिरते मूल्य पर काबू पाने के लिए डॉलर बेच रहा है, जो जुलाई में 80 रुपये प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया था.
ऐसा होने का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि अमेरिका के केंद्रीय बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंची मुद्रास्फीति पर लगाम कसने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में वृद्धि कर दी है. इस साल, यूएस फेड ने अब तक चार मौकों पर कर्ज पर ब्याज की दर बढ़ाई है—यह अगस्त में 2.25-2.5 प्रतिशत रही, जो मार्च में 0.25-0.5 प्रतिशत थी.
ऋण दर में बढ़ोतरी करके यूएस फेड दरअसल मुद्रा के तौर पर डॉलर का उपयोग करने वाले लोगों की क्रय शक्ति सीमित करना चाहता है. और जैसा इकोनॉमिक टाइम्स का एक विश्लेषण बताता है, इसका नतीजा यह हुआ कि भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने पिछले एक साल में 39 अरब डॉलर से अधिक की निकासी की.
भारतीय रिजर्व बैंक के वित्तीय बाजार संचालन विभाग से जुड़े सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस. का एक अध्ययन से बताता है कि 2008 में आर्थिक संकट के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 70 अरब डॉलर घट गया था. जब तक उनका शोध प्रकाशित (12 अगस्त) हुआ तब तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पहले ही 56 अरब डॉलर कम हो चुका था.
हालांकि, अध्ययन का सार यही था कि मुद्रा के तौर पर रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव की संभावनाएं—पिछले आर्थिक झटकों की तुलना में—घटी ही हैं. मुद्रा अस्थिरता एक देश की मुद्रा के मूल्य में दूसरे देश की मुद्रा की तुलना में आने वाले बदलावों से जुड़ी है.
लेखकों ने कहा कि 2008 के आर्थिक संकट के दौरान भारत की विदेशी मुद्रा में गिरावट उसके कुल विदेशी मुद्रा भंडार के 22 प्रतिशत से अधिक थी, जो इस बार सिर्फ 6 प्रतिशत है. ऐसा सिर्फ इसलिए है कि देश में 14 साल पहले की तुलना में अब बहुत अधिक डॉलर (282 अरब डॉलर) हैं. अध्ययन में लिखा गया है, ‘रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार में धीर-धीरे कम प्रतिशत में गिरावट के साथ अपने दखल के उद्देश्यों को हासिल करने में सक्षम रहा है.’
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में सलाहकार अर्थशास्त्री राधिका पांडे का भी मानना है कि अभी स्थिति बहुत खराब नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘अस्थिर वैश्विक पृष्ठभूमि को देखते हुए पूंजी प्रवाह इनफ्लो और आउटफ्लो के बीच झूलता रहेगा. फिलहाल तो रिजर्व में गिरावट चिंताजनक नहीं है. रिजर्व का अनुपात पर्याप्त मात्रा में बना हुआ है. हम 2014 के टेंपर टैंट्रम प्रकरण की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में हैं. लेकिन साथ ही अगर डॉलर मजबूत बना रहता है, तो आरबीआई को रुपये को अपनी गति से गिरने देना होगा.’
मुंबई स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च में एसोसिएट प्रोफेसर राजेश्वरी सेनगुप्ता ने संकेत दिया कि आरबीआई को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ सकता है.
उन्होंने कहा, ‘80 अरब डॉलर (विदेशी मुद्रा हानि) वो कीमत है जो आरबीआई को रुपये को गिरने से बचाने और इसे एक निश्चित सीमा स्तर पर बनाए रखने के लिए चुकानी पड़ रही है. लेकिन बढ़ते चालू खाते के घाटे को देखते हुए रुपये को फिलहाल उसके हाल पर छोड़ देने में ही ज्यादा समझदारी होगी. रुपये के अवमूल्यन से निर्यात बढ़ाने में तो मदद मिल सकती है लेकिन इसकी गिरावट रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार गंवाना कोई स्थायी रणनीति नहीं हो सकती है.’
भारत ने श्रीलंका को $400 मिलियन की मुद्रा विनिमय सुविधा की अवधि बढ़ाई
भारत ने आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के लिए 40 करोड़ डॉलर की मुद्रा विनिमय की सुविधा का विस्तार किया है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के नेतृत्व वाली सरकार ने 12 अप्रैल को अस्थायी रूप से विभिन्न कर्जों की अदायगी को निलंबित कर दिया था।
उसके बाद यह पहला मौका है जब श्रीलंका के लिये कर्ज सुविधा को आगे बढ़ाया गया है।
इससे पहले श्रीलंका ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ समझौता होने तक वह किसी अंतरराष्ट्रीय कर्ज को चुका नहीं पाएगा।
भारतीय रिजर्व बैंक ने सार्क करेंसी स्वैप फ्रेमवर्क 2019-22 के तहत सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के साथ मुद्रा स्वैप समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
समझौते के तहत सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका अमेरिकी डॉलर, यूरो या भारतीय रुपये के मद में अधिकतम 40 करोड़ डॉलर या इसके बराबर राशि निकाल सकता है।
करेंसी स्वैप क्या है?
करेंसी स्वैप एक ऐसा लेनदेन है जिसमें दो पक्ष एक दूसरे के साथ लेकिन अलग-अलग मुद्राओं में समान राशि का आदान-प्रदान करते हैं।
इसके तहत पार्टियां अनिवार्य रूप से एक-दूसरे को पैसे उधार देती हैं और एक निर्दिष्ट तिथि और विनिमय दर पर राशि का भुगतान करती हैं।
इसका उद्देश्य विदेशी मुद्रा में उधार लेने की लागत को कम करना है।
मुद्रा स्वैप में शामिल पक्ष आमतौर पर वित्तीय संस्थान होते हैं।
सार्क मुद्रा विनिमय सुविधा
सार्क मुद्रा विनिमय सुविधा 15 नवंबर, 2012 को लागू हुआ।
यह सुविधा सभी सार्क सदस्य देशों के लिए उपलब्ध है, बशर्ते वे द्विपक्षीय स्वैप समझौतों पर हस्ताक्षर करें।
भारत के अलावा, अन्य दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका हैं।
यह अल्पकालिक विदेशी मुद्रा तरलता आवश्यकताओं या भुगतान तनाव के अल्पकालिक संतुलन के लिए धन प्रदान करता है।
Bangladesh allows Yuan: बांग्लादेश भी अब दगा दे रहा है डॉलर को, युआन से बढ़ रहा है लगाव
Bangladesh allows Yuan: बांग्लादेश बैंक ने अब तमाम बैंकों को अपनी शाखाओं में चीनी मुद्रा युआन में तमाम व्यापारियों के खाते खोलने और उसे रखने का इजाजत दे दी है। अब तक बांग्लादेश के बैंकों में युआन खाते सिर्फ अधिकृत व्यापारी ही खोल सकते थे.
Bangladesh allows Yuan: Xi Jinping meets with Bangladeshi Prime Minister Sheikh Hasina - फोटो : Agency (File Photo)
कारोबार के मामले में बांग्लादेश की चीन पर निर्भरता बढ़ रही है। बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक के एक ताजा फैसले को इस बात का ही संकेत माना जा रहा है। बांग्लादेश बैंक ने अब तमाम बैंकों को अपनी शाखाओं में चीनी मुद्रा युआन में तमाम व्यापारियों के खाते खोलने और उसे रखने का इजाजत दे दी है। समझा जाता है कि इससे सीमा पार व्यापार का सेटलमेंट करने में आसानी होगी। बैंकों को युआन में सेटलमेंट करने का अधिकार भी दे दिया गया है। बांग्लादेश बैंक ने इस सिलसिले में गुरुवार को एक सर्कुलर जारी किया।
अब तक बांग्लादेश के बैंकों में युआन खाते सिर्फ अधिकृत व्यापारी ही खोल सकते थे। फिलहाल चलन यह है कि बैंक नोस्ट्रो खाते संचालित करते हैं। ये वो खाते हैं, जिनमें विदेशी मुद्रा रखी जाती है। अभी तक ज्यादातर ऐसे खाते डॉलर में ही संचालित होते हैं।
व्यापारियों ने बांग्लादेश बैंक के इस फैसले का स्वागत किया है। विशेषज्ञों ने कहा है कि इस वक्त दुनिया भर के सेंट्रल बैंक अपने भंडार में युआन की मात्रा बढ़ा रहे हैं। ऐसा चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत की वजह से हो रहा है। म्युचुअल ट्रस्ट बैंक के प्रबंध निदेशक सईद महबुबूर रहमान ने अखबार बांग्लादेश बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि बांग्लादेश बैंक का यह फैसला व्यापार सेटलमेंट में किसी एक विदेशी मुद्रा पर निर्भरता घटाने की शुरुआत है। इसके साथ ही अब बैंकों में चीनी मुद्रा को अपने भंडार में रखने का चलन बढ़ेगा, ताकि वे भविष्य में पेमेंट सेटलमेंट कर सकें।
बांग्लादेश बैंक के इस निर्णय के पहले यह खबर आई थी कि चीन ने बांग्लादेश बैंक और चीन के सेंट्रल बैंक- पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के बीच मुद्राओं की अदला-बदली (करेंसी स्वैप) का करार करने की पेशकश की है। यह करार होने के बाद कारोबार का भुगतान बांग्लादेश की मुद्रा या युआन- दोनों में से किसी एक में किया जा सकेगा। ढाका विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप स्थित चीनी दूतावास ने इस संबंध में कुछ दिन पहले एक पत्र भेजा। उसमें कहा गया कि करेंसी स्वैप का करार होने से विदेशी मुद्रा की दर में उतार-चढ़ाव से पैदा होने वाली समस्या हल हो जाएगी। साथ ही उससे विदेशी मद्रा विनिमय की लागत घटेगी।
अखबार द बिजनेस स्टैंडर्ड बांग्लादेश के मुताबिक बांग्लादेश बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में युआन की मात्रा बढ़ाने की नीति पर चल रहा है। इससे भंडार में डॉलर का हिस्सा घटा है। 2017 में बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार में युआन का हिस्सा सिर्फ एक फीसदी था। इस वर्ष अगस्त में यह 1.32 फीसदी हो गया। इसी अवधि में डॉलर का हिस्सा 81 से घट कर 75 फीसदी रह गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेश बैंक का ताजा फैसला बांग्लादेश और चीन के बीच तेजी से बढ़ रहे व्यापार भी संकेत है। पिछले वित्त वर्ष में बांग्लादेश ने चीन से एक लाख करोड़ टका का आयात किया, जबकि उसने 4,804 करोड़ टका का निर्यात किया। अब ऐसे कारोबार का भुगतान सेटलमेंट युआन में हो सकेगा। उससे विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की लगातार हो रही कमी से बांग्लादेश को राहत मिलेगी।
विस्तार
कारोबार के मामले में बांग्लादेश की चीन पर निर्भरता बढ़ रही है। बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक के एक ताजा फैसले को इस बात का विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप ही संकेत माना जा रहा है। बांग्लादेश बैंक ने अब तमाम बैंकों को अपनी शाखाओं में चीनी मुद्रा युआन में तमाम व्यापारियों के खाते खोलने और उसे रखने का इजाजत दे दी है। समझा जाता है कि इससे सीमा पार व्यापार का सेटलमेंट करने में आसानी होगी। बैंकों को युआन में सेटलमेंट करने का अधिकार भी दे दिया गया है। बांग्लादेश बैंक ने इस सिलसिले में गुरुवार को एक सर्कुलर जारी किया।
अब तक बांग्लादेश के बैंकों में युआन खाते सिर्फ अधिकृत व्यापारी ही खोल सकते थे। फिलहाल चलन यह है कि बैंक नोस्ट्रो खाते संचालित करते हैं। ये वो खाते हैं, जिनमें विदेशी मुद्रा रखी जाती है। अभी तक ज्यादातर ऐसे खाते डॉलर में ही संचालित होते हैं।
व्यापारियों ने बांग्लादेश बैंक के इस फैसले का स्वागत किया है। विशेषज्ञों ने कहा है कि इस वक्त दुनिया भर के सेंट्रल बैंक अपने भंडार में युआन की मात्रा बढ़ा रहे हैं। ऐसा चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत की वजह से हो रहा है। म्युचुअल ट्रस्ट बैंक के प्रबंध निदेशक सईद महबुबूर रहमान ने अखबार बांग्लादेश बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि बांग्लादेश बैंक का यह फैसला व्यापार सेटलमेंट में किसी एक विदेशी मुद्रा पर निर्भरता घटाने की शुरुआत है। इसके साथ ही अब बैंकों में चीनी मुद्रा को अपने भंडार में रखने का चलन बढ़ेगा, ताकि वे भविष्य में पेमेंट सेटलमेंट कर सकें।
बांग्लादेश बैंक के इस निर्णय के पहले यह खबर आई थी कि चीन ने बांग्लादेश बैंक और चीन के सेंट्रल बैंक- पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के बीच मुद्राओं की अदला-बदली (करेंसी स्वैप) का करार करने की पेशकश की है। यह करार होने के बाद कारोबार का भुगतान बांग्लादेश की मुद्रा या युआन- दोनों में से किसी एक में किया जा सकेगा। ढाका स्थित चीनी दूतावास ने इस संबंध में कुछ दिन पहले एक पत्र भेजा। उसमें कहा गया कि करेंसी स्वैप का करार होने से विदेशी मुद्रा की दर में उतार-चढ़ाव से पैदा होने वाली समस्या हल हो जाएगी। साथ ही उससे विदेशी मद्रा विनिमय की लागत घटेगी।
अखबार द बिजनेस स्टैंडर्ड बांग्लादेश के मुताबिक बांग्लादेश बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में युआन की मात्रा बढ़ाने की नीति पर चल रहा है। इससे भंडार में डॉलर का हिस्सा घटा है। 2017 में बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार में युआन का हिस्सा सिर्फ एक फीसदी था। इस वर्ष अगस्त में यह 1.32 फीसदी हो गया। इसी अवधि में डॉलर का हिस्सा 81 से घट कर 75 फीसदी रह गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेश बैंक का ताजा फैसला बांग्लादेश और चीन के बीच तेजी से बढ़ रहे व्यापार भी संकेत है। पिछले वित्त वर्ष में बांग्लादेश ने चीन से एक लाख करोड़ टका का आयात किया, जबकि उसने 4,804 करोड़ टका का निर्यात किया। अब ऐसे कारोबार का भुगतान सेटलमेंट युआन में हो सकेगा। उससे विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की लगातार हो रही कमी से बांग्लादेश को राहत मिलेगी।
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