समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार

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9 महीने में सबसे कम हुअा देश में विदेशी मुद्रा भंडार
विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति में एक अरब डॉलर से ज्यादा की गिरावट के कारण देश का विदेशी मुद्रा भंडार 27 जुलाई को समाप्त सप्ताह में 95.09 करोड़ डॉलर घटकर साढ़े आठ माह के निचेल स्तर 404.19 अरब डॉलर पर आ गया।
नर्इ दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से डाॅलर के मुकाबले रुपए में कमजोरी देखने को मिल रही है। उससे देश की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी खस्ता हाेती जा रही है। जिसके कारण कर्इ आर्थिक एजेंसियों ने देश के विकास दर के कम होने का अनुमान लगाया है। वहीं दूसरी आेर पेट्रोल आैर डीजल के दाम भी बढ़ रहे हैं। इन दाे कारणों की वजह से देश में 9 महीने में विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी कमी देखने को मिली है।
विदेशी मुद्रा भंडार में आर्इ कमी
विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति में एक अरब डॉलर से ज्यादा की गिरावट के कारण देश का विदेशी मुद्रा भंडार 27 जुलाई को समाप्त सप्ताह में 95.09 करोड़ डॉलर घटकर साढ़े आठ माह के निचेल स्तर 404.19 अरब डॉलर पर आ गया। पिछले सात सप्ताह में से छह में इसमें गिरावट रही है।
पहले भी रह चुका है कम
इससे पहले 20 जुलाई को समाप्त सप्ताह हमें विदेशी मुद्रा भंडार 6.77 करोड़ डॉलर की बढ़त के साथ 405.14 अरब डॉलर पर रहा था। इसका इससे निचला स्तर 15 दिसंबर 2017 को समाप्त सप्ताह में 401.39 अरब डॉलर दर्ज किया गया था। रिजर्व बैंक के आज जारी आँकड़ों के अनुसार, 27 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 1.01 अरब डॉलर घटकर 379.04 अरब डॉलर रह गया। इसका भी यह 15 दिसंबर 2017 के बाद का निचला स्तर है।
सोने के भंडार में बढ़ोत्तरी
स्वर्ण भंडार 6.11 करोड़ डॉलर बढ़कर 21.20 अरब डॉलर पर पहुंच गया। आलोच्य सप्ताह में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास आरक्षित निधि पांच लाख डॉलर बढ़कर 2.47 अरब डॉलर पर और विशेष आहरण अधिकार तीन लाख डॉलर घटकर 1.48 अरब डॉलर हो गया। यह भारत के लिए अच्छी खबर है। इससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने में आसानी होगी। लेकिन भारत सरकार को अपनी मुद्रा को लेकर गंभीरता से विचार करना होगा। ताकि विदेश मुद्रा भंडार में किसी तरह की कोर्इ कटौती ना हो सके।
ब्लॉग: आर्थिक पुनर्बहाली के लिये वित्तपोषण
एशिया प्रशान्त क्षेत्र में आर्थिक सहयोग और समर्थन के ज़रिये बेहतर पुनर्बहाली सम्भव है. संयुक्त राष्ट्र में अवर-महासचिव और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग की कार्यकारी सचिव, आर्मिडा सालसियाह अलिसजहबाना का ब्लॉग.
क्षेत्रीय समन्वित नीतियाँ ज़रूरी
एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में जैसे-जैसे महामारी के सामाजिक, आर्थिक प्रभाव सामने आ रहे हैं, सभी देशों की सरकारें आपातकालीन स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं और खरबों डॉलर के राजकोषीय पैकेजों के ज़रिये इससे निपटने में लगी हैं.
लगातार जारी तालाबन्दी के कारण आवाजाही पर प्रतिबन्ध होने से अर्थव्यवस्था में सुधार के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं. 2019 की आर्थिक स्थिति की तुलना में, पिछले छह महीनों में, एशिया और प्रशान्त देशों में निर्यात आय, प्रेषण, पर्यटन और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) में गिरावट के कारण विदेशी मुद्रा प्रवाह तेज़ी से घटा समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार है.
यह स्थिति चिन्ताजनक है क्योंकि नीति निर्धारकों के सामने ये कठिन स्थिति पैदा हो गई है कि घटते राजकोषीय क्षेत्र के बीच किस तरह विकास पर खर्चों को प्राथमिकता दी जाए.
तीन प्रमुख क्षेत्रों में वित्तपोषण
संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक वित्तपोषण रणनीति तैयार करने के मक़सद से एक वैश्विक पहल के तहत इसमें योगदान कर रहा है.
Financing for Development in the Era of COVID-19 and Beyond नामक इस पहल में कैनेडा और जमैका भी सह-संयोजक हैं.
सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिये एकजुट हैं कि कोविड-19 ख़त्म होने के बाद एक समावेशी, टिकाऊ और लचीली पुनर्बहाली के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध हों.
एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में, पहले से ही अनेक देश तीन प्रमुख क्षेत्रों की वित्तपोषण योजना अपना चुके हैं. उनका उद्देश्य है - समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार घटते वित्त और ऋण भेद्यता की चुनौती का समाधान निकालना; पेरिस समझौते और 2030 एजेण्डा की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप स्थायी पुनर्रनिर्माण सुनिश्चित करना; और विकास के लिये वित्तपोषण के समर्थन में क्षेत्रीय सहयोग की क्षमता का दोहन करना.
एशिया और प्रशान्त के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीएपी) ने हाल ही में बेहतर पुनर्निर्माण पर क्षेत्रीय वार्तालाप की पहली श्रृँखला शुरू की है.
हम स्वास्थ्य महामारी और आर्थिक पतन से उबरने के लिये रास्ते सुझाने व सामूहिक अन्तर्दृष्टि की जानकारी मुहैया कराने के लिये मन्त्रियों, निर्णयाकों, निजी क्षेत्रों और अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों के प्रमुखों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
Fiscal Space में सुधार और उच्च स्तर के ऋण संकट के प्रबन्धन के लिये, ऋण सेवा स्थगन पहल जैसी वैश्विक पहलों के तहत क़र्ज़ वसूली को टालने का विस्तार करने की माँग बढ़ रही है. केन्द्रीय बैंक, अर्थव्यवस्था में जान फूँकने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के प्रयास जारी रख सकते हैं. इसमें कर सुधार बढ़ाना और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में निवेश के लिये सीमित राजकोषीय संसाधनों का उपयोग करते हुए ऋण प्रबन्धन क्षमताओं में सुधार करना शामिल है.
साथ ही, सततता-उन्मुख बाँण्ड और टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में निवेश के बदले ऋण विनिमय जैसे अभिनव वित्तपोषण विकल्पों की खोज होनी चाहिये.
अर्व्यवस्था पर केन्द्रित होने के अलावा, पेरिस समझौते के सामाजिक समानता और पर्यावरणीय स्थिरता सिद्धान्तों समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार को बढ़ावा देते हुए, नीतिगत प्रतिमानों को सस्तो, सुलभ और हरित बुनियादी ढाँचे के मानकों को मुख्यधारा में लाना चाहिये. हम जैसे-जैसे डिजिटल प्रौद्योगिकी और अभिनव प्रयोगों का उपयोग बढ़ा रहे हैं, इन राष्ट्रीय रोज़गार-समृद्ध पुनर्बहाली रणनीतियों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों के वित्तपोषण की भी व्यवस्था होनी चाहिये.
क्षेत्रीय सहयोग
कोई भी देश केवल ख़ुद के दम पर इस एजेण्डा को आगे नहीं ले जा सकता है. क्षेत्रीय समन्वित वित्तपोषण नीतियाँ ही व्यापार फिर से शुरू कर सकती हैं, आपूर्ति श्रृँखलाओं को पुनर्गठित कर सकती हैं और एक सुरक्षित तरीक़े से स्थायी पर्यटन को पुनर्जीवित कर सकती हैं.
एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में, सरकारों को वित्तीय संसाधन मिलाकर एक क्षेत्रीय निवेश कोष बनाना चाहिये. क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करना इसलिये भी ज़रूरी है ताकि सभी देशों को समय पर समान संख्या में टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके.
हम संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीएपी) के माध्यम से ये प्रयास बढ़ाने में मदद कर सकते हैं – ख़ासतौर पर अपने सदस्य देशों, निजी क्षेत्र और अन्वेषकों के साथ मिलकर अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिये सामूहिक वित्तपोषण प्रतिक्रिया का निर्माण करने में मदद दे सकते हैं.
हम साथ मिलकर, एशिया और प्रशान्त की वित्तपोषण रणनीतियाँ बना सकते हैं, जिनसे भविष्य की महामारियों और संकटों से निपटने के लिये सामाजिक कल्याण और आर्थिक लचीलापन बढ़ सके.
आयातित तेलों के दाम टूटने से बीते सप्ताह खाद्य तेलों के भाव में गिरावट
नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) विदेशी आयातित खाद्य तेलों के भाव टूटने के बीच बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सरसों, सोयाबीन, मूंगफली सहित सभी तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट दर्ज हुई।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि विदेशों से आयात होने वाले तेल-तिलहनों के दाम में जोरदार गिरावट रहने से कोई तेल-तिलहन अछूता नहीं रहा और सभी गिरावट में आ गये। स्थिति यह हो गयी कि कई खाद्य तेल मिलों के सामने अस्तित्व बचाने का संकट पैदा हो गया है।
सूत्रों ने कहा कि आयातित तेलों के मुकाबले देशी तेल-तिलहन थोड़ा महंगे जरूर बैठते हैं लेकिन इसमें देश को दूसरा फायदा है। उन्होंने अपने तर्क के पक्ष में कहा कि औसतन प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार प्रतिदिन की खपत 50 ग्राम होती है लेकिन देश की मुद्रास्फीति पर यह गहराई से असर डालने में सक्षम है। डीओसी, खल आदि के महंगा होने से देश के मुर्गीपालन, मवेशीपालन किसान प्रभावित होते हैं। यानी दूध, मक्खन, अंडे एवं चिकन (मुर्गी मांस) के दाम बढ़ते हैं जिनका सीधा असर मुद्रास्फीति पर होता है। आयातित पाम और पामोलीन से हमें डीओसी या खल नहीं मिल सकता और इसे अलग से आयात करने की जरूरत होगी जिसके लिए विदेशी मुद्रा खर्च करनी होगी।
बाजार सूत्रों ने कहा, ‘‘विदेशी तेलों में आई गिरावट हमारे देशी तेल-तिलहनों को चोट पहुंच रही है जिससे समय रहते नहीं निपटा गया तो स्थिति संकटपूर्ण होने की संभावना है। विदेशी तेलों के दाम धराशायी हो गये हैं और हमारे देशी तेलों के उत्पादन की लागत अधिक बैठती है। अगर स्थिति को संभाला नहीं गया तो देश में तेल-तिलहन उद्योग और इसकी खेती गंभीर रूप से प्रभावित होगी। सस्ते आयातित तेलों पर आयात कर अधिकतम करते हुए स्थिति को संभाला नहीं गया तो किसान तिलहन उत्पादन बढ़ाने के बजाय तिलहन खेती से विमुख हो सकते हैं क्योंकि देशी तेलों के उत्पादन की लागत अधिक होगी।
सूत्रों ने कहा कि कई तेल-तिलहन विशेषज्ञ पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश के कुछ अन्य भागों में पाम की खेती बढ़ाने की सलाह देते हैं और इस दिशा में सरकार ने प्रयास भी किये हैं। ऐसा करना एक हद तक सही है लेकिन यदि हमें पशुचारे, डीआयल्ड केक (डीओसी) और मुर्गीदाने की पर्याप्त उपलब्धता और समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार आत्मनिर्भरता चाहिये तो वह सरसों, मूंगफली, सोयाबीन और बिनौला जैसी फसलों से ही प्राप्त हो सकती है। निजी उपयोग के अलावा इसका निर्यात कर देश विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर सकता है। तेल-तिलहन के संदर्भ में इन वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर ही कोई समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार फैसला लिया जाना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि देश के प्रमुख तेल संगठनों को सरकार को जमीनी हकीकत भी बतानी चाहिये कि सस्ते खाद्य तेलों के आयात से देश के तेल-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य गंभीर रूप से प्रभावित होगा और इस स्थिति को बदलने के लिए इन सस्ते आयातित तेलों पर पहले की तरह और हो सके तो अधिकतम सीमा तक आयात शुल्क लगा दिया जाना चाहिये। अगर खाद्य तेलों के दाम कम रहे तो खल की भी उपलब्धता कम हो जायेगी।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को खाद्य तेलों के आयात की ‘कोटा प्रणाली’ को समाप्त करने के बारे में सोचना चाहिये। उन्होंने कहा कि जब सूरजमुखी का आयातित तेल का दाम पहले से लगभग 50 रुपये किलो नीचे चल रहा है तो ऐसे में किसान इस फसल को कैसे बोयेगा? सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का भाव 175 रुपये घटकर 7,100-7,150 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल समीक्षाधीन सप्ताहांत में 750 रुपये घटकर 14,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 110-110 रुपये घटकर क्रमश: 2,120-2,250 रुपये और 2,180-2,305 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं।
सूत्रों ने कहा कि विदेशों में खाद्य तेलों के भाव टूटने से समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज के थोक भाव क्रमश: 125-125 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 5,450-5,550 रुपये समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार और 5,260-5,310 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
गिरावट के आम रुख के बीच समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल भी क्रमश: 850 रुपये, 600 रुपये और 1,250 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 13,400 रुपये, 13,250 रुपये और 11,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सस्ते खाद्य तेल आयात के सामने बेपड़ता होने और गिरावट के आम रुख के अनुरूप समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों में गिरावट देखने को मिली। समीक्षाधीन सप्ताहांत में मूंगफली तिलहन का भाव 150 रुपये टूटकर 6,360-6,420 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पूर्व सप्ताहांत के बंद भाव के मुकाबले समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 150 रुपये टूटकर 14,800 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 35 रुपये की गिरावट के साथ 2,390-2,655 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
सूत्रों ने कहा कि विदेशी तेलों के दाम धराशायी होने के दबाव में सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में भी गिरावट आई। समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 500 रुपये टूटकर 8,450 रुपये क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 500 रुपये घटकर 9,950 रुपये और पामोलीन कांडला का भाव 600 रुपये हानि के साथ 9,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
तेल कीमतों पर दबाव होने के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल भी 950 रुपये टूटकर 11,450 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बंद हुआ।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
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