डॉलर को क्या प्रभावित करता है

क्या होगा इसका असर?
रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा असर इम्पोर्ट पर होगा। आयातकों को अब आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। दरअशर रुपये की गिरावट से आयात महंगा हो जाएगा। मौजूदा समय में भारत क्रूड ऑयल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वनस्पति तेल, फर्टिलाइजर, मशीनरी, सोना, आदि सहीत बहतु कुछ आयात करता है। रुपये के मूल्य में गिरावट से एक्सपोर्ट सस्ता होगा।
Rupee Decline Effect: डॉलर के सामने रुपये के गिरने पर बढ़ी भारतीय पेरेंट्स की चिंता, विदेश में पढ़ रहे बच्चों को घटाने पड़ रहे खर्च
By: एबीपी न्यूज, एजेंसी | Updated at : 22 Jul 2022 08:44 AM (IST)
Rupee Decline Effect: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट भारतीय अभिभावकों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकती है, क्योंकि इससे उनके बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. विशेषज्ञों और अभिभावकों ने यह आशंका जताई है.रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने के प्रभाव से आयात, विदेश यात्रा, अमेरिका में शिक्षा और अन्य चीजें महंगी हो रही हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि छात्र अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं, क्योंकि रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है.
रुपया 80.05 प्रति डॉलर तक गिरा
हाल के दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आई है और यह एक डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 को छू गया है, जो उन अभिभावकों को परेशान कर रहा है, जिनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं और साथ ही अमेरिकी विश्वविद्यालय की डिग्री के इच्छुक हैं. इसके कारण पर बात करें तो अभिभावकों को एक डॉलर खरीदने के लिए अधिक रुपये देने पड़ते हैं और अमेरिका में पढ़ने वाले उनके बच्चों को भी आर्थिक बजट बनाने को लेकर अपनी कमर कसनी पड़ रही है.
डॉलर को क्या प्रभावित करता है
अधिकतर लोगों का मानना है कि डॉलर में मजबूती का सिलसिला जारी रहेगा। ऐसे में यह सवाल उठाना उपयोगी है कि क्या ऐसे लोग गलत भी साबित हो सकते हैं? पूछ रहे हैं आकाश प्रकाश
आज अगर किसी चीज पर सबसे अधिक दांव लगाया जा रहा है तो वह है मजबूत डॉलर। मौद्रिक नीति के भिन्न-भिन्न पूर्वानुमान, ब्याज दरों के अंतर और विकास का संभावित दायरा, ये सभी डॉलर और अमेरिका के पक्ष में हैं और इनकी वजह से अमेरिका बनाम डॉलर को क्या प्रभावित करता है यूरोप और जापान जैसा माहौल बन रहा है। अधिकांश वृहद फंडों के कारोबार और निवेश की थीम इसी पर केंद्रित है। अनेक लोगों का मानना है कि डॉलर में यह तेजी वर्ष 1980 की शुरुआत और 1990 के आखिर के तर्ज पर कई सालों तक जारी रहेगी। हाल के कई सर्वेक्षणों में 80 फीसदी से अधिक हेज फंड प्रबंधकों ने कहा कि वर्ष 2015 में डॉलर सबसे बढिय़ा प्रदर्शन वाली मुद्रा रहेगी। लेकिन जब भी किसी खास कारोबार को लेकर व्यापक सहमति बनती नजर आती है तब पारंपरिक बुद्घिमता को चुनौती देते हुए यह देखना उचित होता है कि क्या बहुमत वाली भीड़ गलत भी साबित हो सकती है? खासतौर पर उस परिस्थिति में ऐसा जानना जरूरी है जब डॉलर के मूल्य जैसे परिवर्तनीय चर पर सहमति बन रही हो। वैश्विक वित्तीय बाजारों में इसकी अहमियत से भला कौन इनकार कर सकता है।
कुछ पर्यवेक्षकों ने इसका विरोधी नजरिया भी पेश किया है। वह इस प्रकार है:
डॉलर के हालिया अतीत पर नजर डालें तो बड़े बदलाव की दो अवधियां रही हैं। एचएसबीसी के मुताबिक सन 1980-84 के दौरान डीएक्सवाई डॉलर सूचकांक 95 फीसदी उछला और वर्ष 1995-99 में वह 51 फीसदी उछला। इन दो बड़े कदमों से इतर डॉलर की औसत तेजी करीब 20 फीसदी रही जो साल भर लंबी चली। मौजूदा उछाल इस औसत को पार कर चुकी है। जून 2014 से अब तक डॉलर 25 फीसदी उछल चुका है। अगर अप्रैल 2011 के निचले स्तर से आकलन किया जाए तो यह 40 फीसदी उछल चुका है। विरोधी मत रखने वालों का कहना है कि यह पर्याप्त तेजी है। अगर यह 1980 और 1990 की तेजी जैसी नहीं है तो इसका अंत करीब है।
पिछली दोनों तेजी उस वक्त आई थीं जब अमेरिका की आर्थिक स्थिति मजबूत थी और मौद्रिक नीति सख्त। इसके अलावा उस वक्त उभरते बाजारों में व्याप्त संकट की वजह से आने वाली पूंजी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। सन 1980 के दशक के आरंभ में लैटिन अमेरिकी ऋण संकट भी था जबकि 1990 में एशियाई संकट। दोनों मामलों में डॉलर संकट के केंद्र में था। अब डॉलर को क्या प्रभावित करता है एक बार फिर मजबूत होते डॉलर के समक्ष उभरते बाजारों की कंपनियों को लेकर चिंता जताई जा रही है।
डॉलर में तेजी के पक्षधर यह कह सकते हैं कि डॉलर जितना मजबूत हो रहा है उससे अधिक तो यूरो और येन कमजोर हो रहे हैं। इन दोनों आर्थिक क्षेत्रों के नीति निर्माता चाहते हैं कि अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर विकास को बढ़ावा दिया जाए और अपस्फीति को दूर रखा जाए। क्वांटिटेटिव ईजिंग (आर्थिक प्रोत्साहन) के प्रभाव तहत ये मुद्राएं डॉलर को पार कर जाएंगी। अगर पहले और दूसरे दौर की क्यूई के दौरान अमेरिकी मुद्रा के प्रदर्शन पर गौर किया जाए तो वह 20 फीसदी गिरी थी। येन और यूरो की कमजोरी पहले ही डॉलर की उस दौर में गिरावट के बराबर है या उससे अधिक।
पिछले एक साल में डॉलर की मजबूती की असल वजह रही है अमेरिका और जापान तथा यूरोपीय संघ की मौद्रिक नीति में भिन्नता। विरोधी मत वालों का कहना है कि निवेशकों की स्थिति और कीमतों में अब यह बात परिलक्षित होने लगी है। बाजार को पूरा यकीन है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा। हालांकि इसके समय और गति पर बहस हो सकती है। इसी तरह यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) ने क्यूई की शुरुआत की है और बैंक ऑफ जापान ने यह इरादा डॉलर को क्या प्रभावित करता है जताया है कि वह आक्रामक तौर तरीके जारी रखेगा। जबकि साल भर पहले इस बात पर बहस थी कि क्या ईसीबी के अध्यक्ष मारियो द्रागी को जर्मनी के विरोध के बावजूद क्यूई की अनुमति मिल पाएगी। या फिर क्या फेड दरों में कटौती कर पाएगा? अब ये दोनों बातें सुनिश्चित हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है।
डॉलर की मजबूती के लिए आंशिक तौर पर विकास के अनुमान भी जिम्मेदार रहे हैं। तेजी के पक्षधरों का अनुमान है कि वर्ष 2015 में अमेरिका कम से कम 3 फीसदी की दर से विकसित होगा जबकि यूरोपीय संघ और जापान ज्यादा से ज्यादा एक फीसदी की दर से। ये अनुमान मौजूदा विनिमय दर पर आधारित हैं। हकीकत यह है कि पिछले कुछ सप्ताह में अमेरिकी आंकड़े लगातार नकारात्मक रहे हैं जबकि इसके उलट यूरो क्षेत्र से सारी खबरें सकारात्मक रही हैं। ऐसे में अगर अनुमान जताने वाले अमेरिकी आंकड़ों में कटौती करें तो आश्चर्य की बात नहीं। जबकि कच्चे तेल की कीमतों में कमी, कमजोर मुद्रा आदि के चलते यूरो क्षेत्र के अनुमान में बढ़ोतरी की जा सकती है। अमेरिका और यूरोप की विकास दर का अंतर कम होना यूरो के लिए सकारात्मक है लेकिन बाजार अभी इसकी अनदेखी कर रहे हैं।
एचएसबीसी के संकेत के मुताबिक डॉलर इस समय स्विस फ्रैंक के बाद दुनिया की दूसरी सर्वाधिक अधिमूल्यित मुद्रा है। फेडरल रिजर्व में भी डॉलर की मजबूती और उसके दायरे को लेकर असहजता बढ़ रही है।
मजबूत होता डॉलर मौद्रिक स्थितियों को सख्त बनाएगा और फेड का अपना मॉडल यह बताता है कि मजबूत डॉलर विकास को प्रभावित करेगा। फेड की नजर डॉलर और उसकी वजह से विकास और मुद्रास्फीति पर पडऩे वाले प्रभाव पर है। एक अन्य रोचक आंकड़ा यह है कि इतिहास हमें बताता है कि डॉलर फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में पहली वृद्घि के बाद के समय में अवश्य गिरता है।
सर्वसम्मति रखन वालों का मानना है कि डॉलर इकतरफा दांव है और वह मजबूत होता रहेगा। अनेक लोगों ने इस हिसाब से तैयारी भी कर ली है। लेकिन इस संभावना से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि डॉलर का यह उत्थान एक स्तर पर जाकर रुक जाए। यह भी हो सकता है कि वह वहां से वापसी करे और एक दायरे में रहे।
अगर डॉलर एक दायरे में रहकर कारोबार करता है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि रुपये पर दबाव कुछ कम होगा। रुपया काफी समय से अधिमूल्यित है। कारोबारी जगत पर अलग-अलग मुद्राओं के प्रभाव ने असर डाला है और उनका मुनाफा प्रभावित हुआ है। आदर्श स्थिति में तो रुपये को डॉलर के मुकाबले कमजोर होना चाहिए लेकिन अगर ऐसा नहीं डॉलर को क्या प्रभावित करता है भी होता तो भी स्थिर डॉलर कम से कम भारतीय कंपनियों को विभिन्न मुद्राओं की वजह से होने वाली दिक्कतों से बचाएगा।
क्रूड 100 डॉलर करेगा पार! आपके निवेश पर क्या होगा असर? किन सेक्टर पर बढ़ेगा दबाव, कहां बनेंगे मौके
इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल (Crude) के भाव में इस साल अबतक करीब 47 फीसदी और 1 साल में 74 फीसदी तेजी आ चुकी है. क्रूड साल 2018 के बाद पहली बार 76 डॉलर प्रति बैरल के भाव के करीब ट्रेड कर रहा है.
क्रूड साल 2018 के बाद पहली बार 76 डॉलर प्रति बैरल के भाव के करीब ट्रेड कर रहा है. एक्सपर्ट और रिसर्च एजेंसियां इसके डॉलर को क्या प्रभावित करता है और महंगा होने का अनुमान लगा रही है. (reuters)
Crude Prices Impact on Investment: इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल (Brent Crude) के भाव में इस साल अबतक करीब 47 फीसदी और 1 साल में 74 फीसदी तेजी आ चुकी है. क्रूड साल 2018 के बाद पहली बार 76 डॉलर प्रति बैरल के भाव के करीब ट्रेड कर रहा है. एक्सपर्ट और रिसर्च एजेंसियां इसके और महंगा होने का अनुमान लगा रही है. बैंक ऑफ अमेरिका ग्लोबल रिसर्च ने अगले साल क्रूड के 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंचने का अनुमान लगाया है. वहीं एक्सपर्ट भी मान रहे हैं कि क्रूड जल्द ही 80 डॉलर प्रति डॉलर का बैरियर पार कर सकता है. क्रूड महंगा होने से देश की ओवरआल इकोनॉमी पर असर होगा. इससे कई सेक्टर प्रभावित होंगे, जिससे उन सेक्टर में आपके निवेश पर भी असर होगा.
और कितना महंगा होगा क्रूड
बैंक ऑफ अमेरिका ग्लोबल रिसर्च के अनुसार अगले 18 महीनों के दौरान दुनिया भर में तेल की मांग में जो तेजी आएगी, वह प्रोडक्शन ग्रोथ रेट को पीछे छोड़ सकती है. इससे इन्वेंट्री में कमी आएगी, जिसका नतीजा यह होगा कि क्रूड और महंगा हो जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार कुछ समय के लिये ब्रेंट 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच सकता है. हालांकि रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि साल 2023 में कीमतें एक बार फिर घटेंगी.
IIFL सिक्योरिटीज के VP (रिसर्च) अनुज गुप्ता का कहना है कि डिमांड बढ़ने से सप्लाई का बैलेंस बिगड़ा है. जिसे तरह से ग्लोबल इकोनॉमी खुलने से क्रूड की डिमांड बढ़ी है, कीमतों को आगे भी सपोर्ट मिलेगा. अभी क्रूड की इन्वेंट्री भी कम हुई हैं. आगे कम से कम 2 महीने क्रूड पर अभी और दबाव दिख रहा है. शॉर्ट टर्म में क्रूड 80 डॉलर का स्तर टच करता दिख रहा है. अब क्रूड की कीमतों में नरमी इस बात पर ज्यादा डिपेंड करेगी कि यूएस में प्रोडक्शन कितना बढ़ता है.
कहां दिखेगा दबाव, कहां बनेंगे मौके
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि क्रूड में जिस तरह से तेजी बनी है, यह ओवरआल इकोनॉमी के लिए निगेटिव है. इससे सीधे तौर पर कई सेक्टर भी प्रभावित होंगे. जो कंपनियां प्रोडक्शन में रॉ मटेरियल के रूप में क्रूड का इस्तेमाल करती हैं, उनकी लागत बढ़ सकती है. निगेटिव इंपैक्ट वाले सेक्टर में OMC, एविएशन, पीवीसी पाइप्स बनाने वाली कंपनियां, पेंट कंपनियां, टायर कंपनियां, सीमेंट कंपनियां, लॉजिस्टिक कंपनियां, स्टील कंपनियां और कुछ कंज्यूमर गुड्स बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं.
वहीं लॉन्ग टर्म में जो सेक्टर अपने स्ट्रक्चर में बदलाव ला रहे हैं, वहां कुछ मौके बनेंगे. जैसे मारुति और टाटा मोटर्स क फोकस इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर है. बैटरी बनाने वाली कंपनियां जैसे अमारा राजा बैटरी, एथेनॉल पर फोकस बढ़ने से शुगर सेक्टर और सोलार पैनल बनाने वाली कंपनियां.
एक बार फिर ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, डॉलर इंडेक्स का ऐसा है हाल
नई दिल्ली। अमेरिकी मुद्रा की मजबूती के बीच सोमवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया (Rupee vs Dollar) 43 पैसे फिसलकर 81.52 के अब तक के निचले स्तर पर आ गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.47 के स्तर पर खुला। इसके बाद यह गिरकर 81.52 के स्तर पर आ गया। इस तरह पिछले सत्र के बंद भाव की तुलना में यह 43 पैसे फिसला। मालूम हो कि शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 30 पैसे टूटकर 81.09 के स्तर पर बंद हुआ था।
एक बार फिर ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, डॉलर इंडेक्स का ऐसा है हाल
नई दिल्ली। अमेरिकी मुद्रा की मजबूती के बीच सोमवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया (Rupee vs Dollar) 43 पैसे फिसलकर 81.52 के अब तक के निचले स्तर पर आ गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.47 के स्तर पर खुला। इसके बाद यह गिरकर 81.52 के स्तर पर आ गया। इस तरह पिछले सत्र के बंद भाव की तुलना में यह 43 पैसे फिसला। मालूम हो कि शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 30 पैसे टूटकर 81.09 के स्तर पर बंद हुआ था।