अस्थिरता के दो प्रकार हैं

राजनीतिक अस्थिरता
उत्तराखंड में सियासी खींचतान के कारण बनी राजनीतिक अस्थिरता इस अल्पायु राज्य की सेहत के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। जिस प्रकार से प्रदेश में सियासी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है, वह इस छोटे से राज्य को विकास की मुख्यधारा से दूर ले जाता नजर आ अस्थिरता के दो प्रकार हैं रहा है।
उत्तराखंड में सियासी खींचतान के कारण बनी राजनीतिक अस्थिरता इस अल्पायु राज्य की सेहत के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। जिस प्रकार से प्रदेश में सियासी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है, वह इस छोटे से राज्य को विकास की मुख्यधारा से दूर ले जाता नजर आ रहा है। प्रदेश में बढ़ते संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए फौरी तौर पर विधानसभा को निलंबित कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। राहत की बात यह है कि विधानसभा भंग नहीं हुई है, इसका अर्थ यह है कि अभी भी नई सरकार के गठन की संभावनाएं बरकरार हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुनी गई सरकार सबसे बेहतर मानी जाती है। माना जाता है कि ऐसी सरकार जनता और प्रदेश के विकास के लिए बेहतर कार्य करती है। यह बात दीगर है कि वर्तमान राजनीति में यह परंपरा अब लीक से हटती जा रही है। प्रदेश में मुख्यत: दो ही पार्टियों की सरकार रही है। राज्य गठन के बाद भाजपा की अंतरिम सरकार रही तो पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में आई। इसके बाद होने वाले हर चुनावों में एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा ने सत्ता संभाली है। वर्ष 2012 में जनता ने दोनों में से किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया। नतीजतन निर्दलीय, उक्रांद व बसपा के सहयोग से कांग्रेस ने सरकार गठित की। ऐसे में मंत्रिमंडल में सहयोगियों को जगह देना लाजिमी था। मंत्रिमंडल में जगह न मिलने से कांग्रेस के भीतर लंबे समय से दायित्व की बाट जो रहे नेताओं ने तभी बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। विजय बहुगुणा का मुख्यमंत्री पद से हटना भी आपसी खींचतान का ही नतीजा रहा। हरीश रावत सरकार पर वन मैन शो का आरोप लगा और सदन के भीतर ही बगावत हो गई। अब बदले हुए हालात में फिलहाल विधानसभा निलंबित है। जाहिर है कि इसका एकमात्र कारण दोनो दलों के नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं है। हालांकि, अभी भी कांग्रेस स्वयं के बहुमत में होने का दावा कर रही है। इसके लिए राजभवन में विधायकों की परेड तक करवाई जा चुकी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता अब सरकार बनाने के सुर अलापने लगे हैं। बागी विधायक अभी अपनी सदस्यता बचाने के लिए कोर्ट की शरण में जाने की तैयारी कर रहे हैं। सदस्यता बचने पर वे भाजपा को बाहर से समर्थन दे सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यानी, अभी प्रदेश की राजनीति में आया यह भूचाल पूरी तरह शांत नहीं हुआ है। जनता की नजरें भी पूरे घटनाक्रम पर टिकी हुई हैं। नुक्कड़-मोहल्लों में होने वाली चर्चाओं का केंद्र मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम है। प्रदेश की दशा और दिशा तय करने में इन्हीं की मुख्य भूमिका रहेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पर जनता इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला सुनाएगी।
अस्थिरता के दो प्रकार हैं
वे अर्थव्यवस्थाएं अधिक मजबूत हैं जिनमें मूल्य से जुड़े संकेत सीधे अंतिम उपभोक्ता तक हस्तांतरित हो जाते हैं। इस संबंध में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं सुमन बेरी
टी एन नाइनन अपनी नवीनतम पुस्तक द टर्न ऑफ द टॉर्टस में यह बताते हैं कि कैसे आजादी के बाद से ही भारत विनिर्माण के क्षेत्र में बड़ी शक्ति बनने में नाकाम रहा है। बावजूद इसके कि 20वीं सदी के शुरुआती आधे दौर तक उसे इसमें सफलता मिली। वह बताते हैं कि बतौर एक क्षेत्र विनिर्माण कई दशकों तक नीतिगत भ्रम का ही शिकार रहा। इसके परिणामस्वरूप यह पूरा क्षेत्र रोजगार, पैमाने, घरेलू जीवंतता अस्थिरता के दो प्रकार हैं अथवा वैश्विक प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में पीछे रह गया। हालांकि टुकड़ों में इसका प्रदर्शन अच्छा रहा है। मूलरूप से देखा जाए तो यह नीतिगत विफलता है क्योंकि हम सेवा क्षेत्र में सफलता का स्वाद चख चुके हैं और वहां नीतिगत सहायता ज्यादा है।
मैं इस ऊर्जा मूल्य निर्धारण क्षेत्र से इसकी समानता अस्थिरता के दो प्रकार हैं अस्थिरता के दो प्रकार हैं को देखकर चकित रह गया। देश के ऊर्जा क्षेत्र पर आने वाली एक किताब में इस विषय पर लिखा गया है। मैं उस पुस्तक का सह लेखक हूं। निश्चित तौर पर ऊर्जा शब्द अपने आप में अमूर्त है। इसका प्रयोग प्राथमिक ऊर्जा यानी मूलभूत ईंधन जैसे कि कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा आदि के साथ-साथ ग्रामीण भारत में प्रयोग होने वाली जलाऊ लकड़ी और गोबर आदि के लिए भी किया जाता है। इसका इस्तेमाल ऊर्जा सेवाओं के लिए भी किया जाता है। यह वह प्रकार है जिसमें अंतत: इनका प्रयोग किया जाता है। मसलन बिजली, डीजल, हवाई ईंधन या फिर औद्योगिक अनुप्रयोग में कोयला और प्राकृतिक गैस या घरेलू क्षेत्र में ,खाना पकाने, रोशनी करने, ठंडा करने और गरम करने में।
इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में और इनमें से कई ईंधनों की बात करें तो इनकी कीमत को लेकर जबरदस्त अकादमिक और नीतिगत बहस हो चुकी है। अक्सर यह कोशिश भी की गई है कि इनसे जुड़े महत्त्वपूर्ण मसलों को भी सुलझाया जाए। वर्ष 2006 की आंतरिक ऊर्जा नीति की विशेषज्ञ समिति ने भी ऐसा ही किया था। उस समिति का गठन तत्कालीन योजना आयोग ने किया था और किरीट पारेख को उसका अध्यक्ष बनाया गया था। इसमें दो राय नहीं कि नीति आयोग द्वारा तैयार की जा रही आगामी राष्टï्रीय ऊर्जा नीति में भी इस पर विचार किया जाएगा।
हमारी किताब वर्ष 2050 तक भारतीय ऊर्जा व्यवस्था के उद्भव के दीर्घकालिक दृष्टिïकोण पर आधारित है। इसमें यह चर्चा की गई है कि एक लचीली, मजबूत और उपरोक्त समयावधि के लिए अनुकूल ऊर्जा व्यवस्था का डिजाइन तैयार करने में मूल्य निर्धारण की क्या भूमिका होनी चाहिए? इस प्रक्रिया में पुस्तक चार बदलावों को चिह्निïत करती है जो अपरिहार्य हैं लेकिन इसके साथ अनिश्चितता भी जुड़ी हुई है। खासतौर पर अग्रिम तकनीक को लेकर अनिश्चितता। ये बदलाव हैं पारंपरिक से आंतरिक ईंधन की ओर (2016 के बजट में उल्लिखित), शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा की बढ़ती मांग, भारतीय ऊर्जा और वैश्विक आपूर्ति के स्रोतों में गहन एकीकरण तथा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को लेकर प्रतिबद्घ विश्व में चुनौतियों और अवसरों की पहचान करना। इस लिहाज से देखा जाए तो पुस्तक परिदृश्य विश्लेषण भर का काम नहीं करती है बल्कि वह प्रमुख अनिश्चितताओं का भी विश्लेषण करती है। निश्चित रूप से जहां तक वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था की बात है तो पुस्तक शेल की न्यू लेंस सिनारियो के अनुरूप ही है जो पहली बार वर्ष 2013 में प्रकाशित हुई थी।
पुस्तक बताती है कि अतीत में ऊर्जा कीमतों के निर्धारण अस्थिरता के दो प्रकार हैं में कई कारकों की भूमिका रही है। मसलन, क्रय सामथ्र्य, औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, घरेलू आपूर्ति का विस्तार, आकलित मुद्रास्फीति का नियंत्रण, राजस्व की आवश्यकता, बाह्यï परिस्थितियों का मूल्यांकन मसलन सड़क, स्थानीय प्रदूषण और अभी हाल में सामने आया कार्बन मूल्य। कमोबेश सभी समाजों में फिर चाहे वे अमीर हों या गरीब, ऊर्जा की कीमत पूरी तरह राजनीतिक है क्योंकि इसमें वितरण का मसला शामिल रहता है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। हालांकि पुस्तक अपना आकलन इस निष्कर्ष पर समाप्त करती है कि आने वाले दशकों में ऊर्जा मूल्य निर्धारण का लक्ष्य उत्पादन और वितरण बढ़ाना होना चाहिए। इसके लिए और अधिक विविधतापूर्ण निवेशकों की भागीदारी आवश्यक है।
पुस्तक अपने मूल में अर्थशास्त्र की सर्वाधिक ख्यात दलीलों की मूल भावना को अंगीकृत करती है। यानी प्रत्येक आर्थिक नीति संबंधी उपाय को एक लक्ष्य हासिल करने के लिए लक्षित किया जाना चाहिए। घरेलू गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण में तब्दील करना इस सिद्घांत का साहसिक प्रदर्शन है। बहस को व्यापक बनाते हुए पुस्तक कहती है कि एक विश्वसनीय और मजबूत ऊर्जा व्यवस्था से होने वाले अन्य लाभों में से कई की पूर्ति एक वित्तीय रूप से व्यवहार्य व्यवस्था भी कर सकती है जो लागत वसूल करने में सक्षम हो। इसी समाचार पत्र में हाल ही में प्रकाशित एक आलेख के शीर्षक का तात्पर्य ही यह था कि ऊर्जा का अनुपलब्ध हो जाना उसकी किसी भी लागत से कहीं अस्थिरता के दो प्रकार हैं अधिक महंगा है। इस मसले पर एक अलग बात यह है कि अगले तीन दशक में भारत के प्रदर्शन की तुलना अलग-अलग मानकों पर पश्चिमी यूरोप, जापान और दक्षिण कोरिया से की जाए। वह भी पिछली आधी सदी में उनके ऊर्जा उद्भव को लेकर। ये तीनों देश औद्योगीकरण और कम संसाधनों के बावजूद समृद्घि के उदाहरण हैं।
अंत में बात करते हैं अस्थिरता की। हमारी किताब के विमोचन के अवसर पर अपने संबोधन में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि घरेलू नीति निर्माताओं के सामने वैश्विक ईंधन कीमतों में हो रहे अप्रत्याशित बदलाव की जबरदस्त चुनौती है। इसमें सभी स्तरों पर समायोजन करना होता है। मसलन वृहद आर्थिक संतुलन, ऊर्जा उद्योग के स्तर पर संतुलन और ग्राहकों के स्तर पर भी। खुद सरकार भी ऊर्जा उपयोगकर्ता और अस्थिरता के दो प्रकार हैं राजस्व प्राप्तकर्ता दोनों रूपों में इसमें शामिल होती है। मैं या कहें यह पुस्तक थोड़ी राहत मुहैया करा सकती है। मजबूत अर्थव्यवस्थाएं वे हैं जहां अस्थिरता के दो प्रकार हैं मूल्य संकेतक सीधे अंतिम उपभोक्ता तक पहुंच जाते हैं। निश्चित तौर पर शेल की पुस्तक न्यू लेंस सिनारियो से निकलने वाला असहज संकेतक यह है कि फिलहाल यह मानने के हालात नहीं हैं कि अस्थिरता में कमी आ सकती है। ऐसी तमाम वजहें हैं जिनके आधार पर यह माना जा सकता है कि अस्थिरता विश्व अर्थव्यवस्था का अहम गुण बना रहेगा। ऊर्जा बाजार में अस्थिरता के बीच निवेश के लायक स्थिर नीतिगत माहौल कायम करना मुश्किल होगा। मौजूदा सरकार के सामने यह एक अहम चुनौती है।
गुडलक टुडे: जीवन में चंचलता और अस्थिरता दूर करेंगे ये उपाय
इस वीडियो में पंडित शैलेंद्र पांडेय बता रहे हैं कि जीवन में चंचलता और अस्थिरता को कैसे दूर किया जा सकता है. साथ ही पंडित जी ने ये भी बताया कि चंचलता और अस्थिरता के दो प्रकार हैं अस्थिरता को कैसे दूर किया जा सकता है. सूर्य देव की उपासना से इनको विशेष लाभ हो सकता है .
Pandit Shailendra Pandey is telling about what is Siddha Kunjika Stotra. What is the glory of Siddha Kunjika Stotra and what are the results obtained by reciting Siddha Kunjika Stotra? Also learn how to recite Siddha Kunjika Stotra?
भारतीय शेयर मार्केट में अस्थिरता: कारण और भविष्य
21वीं सदी के बाद से भारत सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शेयर मार्केट में से एक रहा है। कोविड महामारी के प्रकोप के बाद से यह सब बदल गया है। भारतीय स्टॉक अब उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले से हालात और भी खराब हो गए हैं। ऐसे में आने वाले कुछ हफ्तों में निवेशक क्या उम्मीद कर सकते हैं? चिंता न करें क्योंकि हम वर्तमान संकट के कारणों सहित आपको सब कुछ समझाएंगे।
मार्केट में इस अस्थिरता का कारण क्या है?
भारतीय स्टॉक मार्केट वैश्विक कारकों से प्रभावित हुआ है। सबसे बड़ा कारण 2020 में आई कोविड महामारी थी। यह महामारी न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में, स्टॉक मार्केट में अस्थिरता लाने में महत्वपूर्ण रही है। हालांकि महामारी अब काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन इसका प्रभाव अभी भी बना हुआ है। यह वास्तव में अर्थव्यवस्था के लिए महामारी के प्रभाव के चंगुल से बाहर आने का समय है।
पिछले कुछ वर्षों में तेल की बढ़ती कीमतों ने भी भारतीय स्टॉक मार्केट की बढ़ती अस्थिरता में योगदान दिया है। भारत अभी भी अपनी विशाल ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए कच्चे तेल के आयात पर निर्भर है। इस प्रकार, तेल की ऊंची कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था और स्टॉक मार्केट के लिए हानिकारक हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर महंगाई का कहर जारी है। इसलिए, लोगों के खरीदने की क्षमता में काफी गिरावट आई है। स्वाभाविक रूप से, इसका भारतीय स्टॉक मार्केट पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसके साथ ही, रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध वैश्विक स्टॉक मार्केट के लिए खराब रहा है। फलस्वरूप, भारतीय स्टॉक मार्केट भी इससे प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है। युद्ध ने भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना बहुत कठिन बना दिया है।
भविष्य में क्या उम्मीद करें
इस तरह की अस्थिरता और मुद्रास्फीति अगले कुछ हफ्तों में बने रहने की संभावना है। आने वाले हफ्तों में भी सुधार की उम्मीद बहुत कम है। ऐसा अर्थशास्त्री दिलीप भट्ट का मानना है। उनका कहना है कि यह ट्रेंड अगले दो से तीन तिमाहियों तक जारी रहने की संभावना है।
अर्थशास्त्री अमनीश अग्रवाल के अनुसार, भारतीय आईटी कंपनियां भविष्य में भी मजबूती से प्रदर्शन करती रहेंगी। उनका सुझाव स्टॉक में निवेश के लिए मिडकैप से लार्ज स्केल आईटी कंपनियों को लक्षित करने का है। क्योंकि, यह स्टॉक मार्केट में आने वाले हफ्तों में निवेश करने लायक एक क्षेत्र है। अमनीश अग्रवाल की सलाह है की उन संस्थाओं में निवेश करने की सोचें जिनके स्टॉक पहले से ही महत्वपूर्ण सुधार के दौर से गुजर रहे हैं।
अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य वित्तीय उद्देश्यों के लिए है। आपको इसे किसी भी कानूनी या कर निर्धारण या निवेश या बीमा सलाह के रूप में नहीं लेना चाहिए। वित्तीय निर्णय लेने की स्थिति में आपको अलग से स्वतंत्र सलाह लेनी चाहिए।
21वीं सदी के बाद से भारत सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शेयर मार्केट में से एक रहा है। कोविड महामारी के प्रकोप के बाद से यह सब बदल गया है। भारतीय स्टॉक अब उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले से हालात और भी खराब हो गए हैं। ऐसे में आने वाले कुछ हफ्तों में निवेशक क्या उम्मीद कर सकते हैं? चिंता न करें क्योंकि हम वर्तमान संकट के कारणों सहित आपको सब कुछ समझाएंगे।
मार्केट में इस अस्थिरता का कारण क्या है?
भारतीय स्टॉक मार्केट वैश्विक कारकों से प्रभावित हुआ है। सबसे बड़ा कारण 2020 में आई कोविड महामारी थी। यह महामारी न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में, स्टॉक मार्केट में अस्थिरता लाने में महत्वपूर्ण रही है। हालांकि महामारी अब काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन इसका प्रभाव अभी भी बना हुआ है। यह वास्तव में अर्थव्यवस्था के अस्थिरता के दो प्रकार हैं लिए महामारी के प्रभाव के चंगुल से बाहर आने का समय है।
पिछले कुछ वर्षों में तेल की बढ़ती कीमतों ने भी भारतीय स्टॉक मार्केट की बढ़ती अस्थिरता में योगदान दिया है। भारत अभी भी अपनी विशाल ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए कच्चे तेल के आयात पर निर्भर है। इस प्रकार, तेल की ऊंची कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था और स्टॉक मार्केट के लिए हानिकारक हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर महंगाई का कहर जारी है। इसलिए, लोगों के खरीदने की क्षमता में काफी गिरावट आई है। स्वाभाविक रूप से, इसका भारतीय स्टॉक मार्केट पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसके साथ ही, रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध वैश्विक स्टॉक मार्केट के लिए खराब रहा है। फलस्वरूप, भारतीय स्टॉक मार्केट भी इससे प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है। युद्ध ने भारतीय रिज़र्व बैंक अस्थिरता के दो प्रकार हैं के लिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना बहुत कठिन बना दिया है।
भविष्य में क्या उम्मीद करें
इस तरह की अस्थिरता और मुद्रास्फीति अगले कुछ हफ्तों में बने रहने की संभावना है। आने वाले हफ्तों में भी सुधार की उम्मीद बहुत कम है। ऐसा अर्थशास्त्री दिलीप भट्ट का मानना है। उनका कहना है कि यह ट्रेंड अगले दो से तीन तिमाहियों तक जारी रहने की संभावना है।
अर्थशास्त्री अमनीश अग्रवाल के अनुसार, भारतीय आईटी कंपनियां भविष्य में भी मजबूती से प्रदर्शन करती रहेंगी। उनका सुझाव स्टॉक में निवेश के लिए मिडकैप से लार्ज स्केल आईटी कंपनियों को लक्षित करने का है। क्योंकि, यह स्टॉक मार्केट में आने वाले हफ्तों में निवेश करने लायक एक क्षेत्र है। अमनीश अग्रवाल की सलाह है की उन संस्थाओं में निवेश करने की सोचें जिनके स्टॉक पहले से ही महत्वपूर्ण सुधार के दौर से गुजर रहे हैं।
अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य वित्तीय उद्देश्यों के लिए है। आपको इसे किसी भी कानूनी या कर निर्धारण या निवेश या बीमा सलाह के रूप में नहीं लेना चाहिए। वित्तीय निर्णय लेने की स्थिति में आपको अलग से स्वतंत्र सलाह लेनी चाहिए।