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Unlisted Shares क्या होते है

Unlisted Shares क्या होते है
प्रतीकात्मक चित्र।

जब स्टॉक डिलीस्टेड होता है तो क्या होता है?

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स्टॉक एक्सचेंज में कई नियम और विनियम हैं जो एक कंपनी को पूरा करना पड़ता है यदि वह चाहता है कि उसके स्टॉक , एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो। यह विनिमय के मानक को बनाए रखने और सदस्यता को विनियमित करने के लिए किया जाता है। शेयर बाजार की स्थिरता निवेशकों के आत्मविश्वास पर काफी हद तक निर्भर करता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि विश्वास बनाए रखा गया है , केवल सार्वजनिक कंपनियां जो आवश्यकताओं को पूरा करती हैं उन्हें ही एक्सचेंज पर खुद को सूचीबद्ध करने की अनुमति है।

शेयरों की डिलीस्टिंग वह प्रक्रिया है जिसमें सूचीबद्ध स्टॉक को स्टॉक एक्सचेंज से हटा दिया जाता है , और इस प्रकार वो कंपनी अब कारोबार नहीं कर सकती है। डिलीस्टिंग का मतलब स्टॉक एक्सचेंज से स्थायी रूप से कंपनी के स्टॉक को हटाना है।

डिलिस्टेड शेयरों का क्या होता है?

आप सोच रहें होंगे कि डिलिस्टेड स्टॉक क्या होता है। कंपनी के पास मुख्य रूप से दो विकल्प हैं अगर कुछ शेयर डिलिस्टेड किया जाता है तो – व्यापार ओवर – द – काउंटर बुलेटिन बोर्ड या पिंक शीट सिस्टम पर होगा। यदि कंपनी अपने वित्तीय विवरणों को जारी करने में अप टू डेट है , तो यह ओवर – द – काउंटर बुलेटिन बोर्ड पर व्यापार करना चुनता है क्योंकि यह पिंक शीट्स से बेहतर विनियमित किया जाता है। यदि यह संभव नहीं है , तो यह पिंक शीट्स का विकल्प चुनता है , जो कम से कम विनियमित है जहां तक सार्वजनिक – कारोबार इक्विटी बाजार का संबंध है।

यदि कोई विशेष स्टॉक इनमें से किसी एक के लिए नीचे गिर जाता है , तो यह आम तौर पर निवेशकों का विश्वास खो देता है , क्योंकि कंपनी प्रमुख एक्सचेंजों के आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं कर पाती है। अगर कंपनी को कुछ समय के लिए डिलिस्टेड किया जाता है , तो संस्थागत निवेशक ब्याज खो देंगे और उस पर शोध करना बंद कर देंगे। इसका परिणाम होगा निवेशकों को कंपनी और स्टॉक के बारे में कम उपलब्ध जानकारी । इस वजह से , तरलता और व्यापार की मात्रा कम हो जाती है।

यह आपको कैसे प्रभावित करता है?

पूरी प्रक्रिया के दौरान , एक व्यक्ति अभी भी कंपनी के शेयरों का मालिक है , अगर वे उन्हें बेचने का फैसला नहीं करते हैं। लेकिन , व्यापक ज्ञान में , जब एक कंपनी को सीमांकित किया जाता है , जिसे भविष्य के दिवालियापन के संकेत के रूप में माना जाता है। यदि कोई महत्वपूर्ण विनिमय आपके पास स्टॉक में से किसी एक को डिलीट करता है , तो सलाह दी जाती है कि आप सीमांकन और उस प्रभाव के कारणों को ध्यान से देखें , और विचार करें कि आप इसे जारी रखना चाहते हैं या नहीं।

डिलीस्टिंग स्वैच्छिक या अनैच्छिक हो सकती है। स्वैच्छिक डिलीस्टिंग में , प्रक्रिया को केवल तभी सफल माना जाता है जब अधिग्रहणकर्ता का शेयरधारक और सार्वजनिक शेयरधारकों द्वारा प्रस्तुत शेयरों को एक साथ ली गई कंपनी की कुल शेयर पूंजी का 90% हो । कंपनी के प्रमोटर को इसमें भाग लेने की अनुमति नहीं है। फ्लेर प्राइस रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया का उपयोग करके आ जाती है।

आधिकारिक तौर पर डीलिस्टिंग प्रक्रिया को मंजूरी मिलने के बाद ही शेयरों को औपचारिक रूप से डिलीट किया जाता है। उस बिंदु से , अवशिष्ट शेयरधारकों को एक साल की निकास खिड़की की पेशकश की जाती है ताकि वे शेयर को टेंडर दे सकें जो वे मूल्य निर्धारण के दौरान तय किए गए मूल्य पर रखते हैं। तो , एक स्वैच्छिक सीमांकन अचानक कभी नहीं हो सकता है। निवेशकों को अपने स्टॉक बेचने के लिए पर्याप्त समय दिया जाता है। यदि कोई निवेशक सीमांकन के बाद शेयर रखने का विकल्प चुनता है , तो वह उन शेयरों पर कानूनी स्वामित्व और अधिकारों का आनंद लेना जारी रखेगा।

यदि अनैच्छिक डिलीस्टिंग होती है , तो जिस कंपनी को डिलीट किया जाता है , उसके निदेशक , समूह फर्म और प्रमोटरों को एक दशक तक सिक्योरीटिस मार्केट में प्रवेश करने से प्रतिबंधित किया जाता है , जिसकी डिलीस्टिंग की तारीख से गणना की जाती है। प्रमोटरों को सार्वजनिक शेयरधारकों द्वारा आयोजित शेयरों को एक ऐसे मूल्य पर खरीदना चाहिए जो एक स्वतंत्र वैल्यूयर द्वारा तय किया गया हो।

रिस्की साबित हो सकता है अनलिस्टेड शेयरों में निवेश

अनलिस्टेड शेयर खरीदने या बेचने में कानूनी तौर पर कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इस बिजनस में गलत चलन दिख रहे हैं।

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प्रतीकात्मक चित्र।

छोटे निवेशकों को मिल रहा धोखा
हैरानी की बात यह है कि इन स्टॉक्स को छोटे निवेशकों को एक्सक्लूसिव बताकर बेचा जा रहा है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे निवेशकों को ऐसे शेयर बेचकर ब्रोकर अहसान कर रहे हैं। भले ही ब्रोकरों को इस स्ट्रैटिजी से अनलिस्टेड शेयर बेचने में मदद मिल रही है, लेकिन असल में वे छोटे निवेशकों के साथ छल कर रहे हैं। अनलिस्टेड कंपनियों में शेयरहोल्डर्स की संख्या की कोई सीमा नहीं होती। मुझे लगता है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया की मदद से देश में ऐसे शेयरों का एक बड़ा अंडरग्राउंड मार्केट फल-फूल रहा है।

काम कानूनी, बशर्ते दोनों पक्षों को पता है
अनलिस्टेड शेयरों को खरीदने या बेचने में कुछ भी गलत नहीं है। अगर कोई कंपनी चुनिंदा लोगों से फंड जुटा रही है तो वह भी बिजनस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एंजेल इन्वेस्टिंग और वेंचर फंडिंग में भी यही होता है, लेकिन वे स्पेशल केस हैं। जिन लोगों के पास अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर हैं, उन्हें प्राइवेट इन्वेस्टर्स को बेचने में भी कोई बुराई नहीं है, बशर्ते दोनों पक्षों को इसकी हकीकत पता हो। अगर वे सोच-समझकर अनलिस्टेड स्टॉक्स में पैसा लगाते हैं और उन्हें उसके अच्छे-बुरे का ज्ञान है तो मुझे इससे कोई ऐतराज नहीं। लेकिन पीपीएफ और एसआईपी में पैसे लगाने वाले को गुमराह करके दो या तीन लाख के अनलिस्टेड स्टॉक्स बेचना बिल्कुल ठीक नहीं है।

समस्या से वाकिफ नहीं निवेशक
निवेशकों को यह बताकर अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर बेचे जा रहे हैं कि संबंधित कंपनियां जल्द ही आईपीओ लाएंगी और तब उनके शेयर की वैल्यू में कई गुना तेजी आएगी। सच तो यह है कि इनमें से कई कंपनियों के शेयर ईसॉप्स में एंप्लॉयीज को मिले थे और उसके बाद कंपनी का आईपीओ लटक गया। इस वजह से एंप्लॉयीज ईसॉप्स में मिले शेयर बेचने को बेताब हैं। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज और यूटीआई के शेयर छोटे निवेशकों को बेचे जा रहे हैं। बदकिस्मती यह है कि निवेशक इन कंपनियों से जुड़ी समस्याओं से वाकिफ नहीं हैं। उन्हें यह तक पता नहीं है कि इनके आईपीओ में किस वजह से देरी हो रही है। अनलिस्टेड स्टॉक्स की कीमत पारदर्शी तरीके से तय होती तो इन दोनों कंपनियों के शेयर बहुत कम दाम पर मिल रहे होते। छोटे निवेशक याद रखें कि शेयर बाजार में लिस्ट होने के बाद उन्हें ऐसी कंपनियां अच्छे भाव पर मिल सकती हैं।

अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर डीमैट फॉर्म में ही होंगे जारी, सरकार ने की घोषणा

मंगलवार को कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री ने इस संबंध में एक बयान जारी किया. इसमें उसने बताया कि भव‍िष्य में डीमैट या इलेक्ट्रोनिक फॉर्म में Unlisted Shares क्या होते है Unlisted Shares क्या होते है ही शेयरों को ट्रांसफर किया जाएगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर

विकास जोशी

  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2018,
  • (अपडेटेड 11 सितंबर 2018, 6:03 PM IST)

निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने एक अहम फैसला लिया है. मंगलवार को केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि अब अनलिस्टेड पब्लिक कंपनियों को अपने नये शेयर डीमैट फॉर्म में ही जारी करने होंगे. ऐसा करना इन कंपनियों के लिए 2 अक्टूबर से अनिवार्य हो जाएगा.

मंगलवार को कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री ने इस संबंध में एक बयान जारी किया. इसमें उसने बताया कि अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर भव‍िष्य में डीमैट या इलेक्ट्रोनिक फॉर्म में ही ट्रांसफर किया जाएगा.

इस फैसले को लेकर मंत्रालय ने कहा कि पारदर्श‍िता बढ़ाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा की खातिर यह कदम उठाया गया है. इसके साथ ही कॉरपोरेट गवर्नेंस को बढ़ावा देने की खातिर भी यह फैसला लिया गया है.

मंत्रालय ने कहा कि 2 अक्टूबर से यह व्यवस्था अनिवार्य हो जाएगी. इसके बाद डिमैटेरियलाइज्ड फॉर्म में ही अनलिस्टेड पब्लिक कंपनियों को अपने नये शेयर जारी करने होंगे. इसके अलावा शेयरों को ट्रांसफर करने का काम भी इसी से करना होगा.

बता दें कि कंपनीज एक्ट, 2013 में सरकारी कंपनियों के साथ ही निजी कंपनियों को भी शामिल किया जाता है. आम तौर पर जिस कंपनी में 200 से ज्यादा सदस्य होते हैं, उसे ही पब्ल‍िक कंपनियों की श्रेणी में रखा जाता है. ऐसी कंपनियों को कॉरपोरेट गवर्नेंस के नियमों का पालन करना पड़ता है.

मिनिस्ट्री की मानें तो ऐसा करने से कई दिक्कतें दूर हो जाएंगी. इस फैसले से फिजिकल सर्ट‍िफ‍िकेट के खोने, चोरी होने और फ्रॉड जैसे कई जोख‍िमों से बचा जा सकेगा.

क्यों शेयर बाजार से डीलिस्ट होती है कंपनियां, क्या होता है निवेशकों पर इसका असर?

कंपनी के स्टॉक को शेयर बाजार बाहर करने की प्रक्रिया डीलिस्टिंग कहलाती है. .कंपनियां अपनी इच्छा से या फिर SEBI के निर्देश पर अपने स्टॉक को बाजार से डीलिस्ट कराती है.

क्यों शेयर बाजार से डीलिस्ट होती है कंपनियां, क्या होता है निवेशकों पर इसका असर?

TV9 Bharatvarsh | Edited By: सौरभ शर्मा

Updated on: Mar 31, 2022 | 6:41 AM

साल 2021 को शेयर बाजार (Stock Market) के इतिहास में आईपीओ (IPO) के साल के रूप में जाना जाता है. करीब 65 कंपनियों ने अपने शेयरों को बाजार में उतारकर कुल 1.29 लाख करोड़ रुपये जुटा लिए. आईपीओ के इस मेले ने शेयर बाजार में नए निवेशकों की कतार लगा दी. कई आईपीओ में जबरदस्‍त पैसा कूटने से नए निवेशक काफी उत्‍साहित हैं. साहिल भी ऐसे ही एक निवेशक हैं उन्‍होंने एक आईपीओ में पैसा लगाया था और उसमें उन्‍होंने खूब मुनाफा कमाया. लेकिन हाल में आई एक खबर से वे चकित रह गए. उन्‍होंने एक कंपनी में कई साल पहले पैसा लगाया था, जो अब शेयर बाजार से डीलिस्‍ट (delisting of share) हो रही है. यह क्‍या नई चीज आ गई यार… वे परेशान हो गए.

अब मुझे क्‍या करना होगा? इन सब सवालों पर मंथन करते हुए वे पहुंच गए शेयर बाजार के जानकार दोस्‍त अतुल के पास. अतुल ने कहा…. घबराओ नहीं, पहले कॉफी पीओ… मैं तुम्‍हें सब बताता हूं… जिस तरह से एक्‍सचेंजों पर कंपनियां लिस्‍ट होती हैं, उसी तरह से उन्‍हें डीलिस्‍ट भी किया जाता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी लिस्‍टेड कंपनी के शेयर को स्‍टॉक एक्‍सचेंजों से हटाया यानी डीलिस्‍ट किया जाता है.

क्यों होती हैं कंपनियां डीलिस्ट

वैसे तो यह बहुत गंभीर और अनिष्‍टकारी जैसा लगता है, लेकिन सच तो यह है कि डीलिस्‍ट‍िंग हमेशा बुरी चीज नहीं होती. असल में यह अक्‍सर कंपनी के अनुरोध पर स्‍वैच्छिक रूप से होता है. दूसरी तरफ, जब कोई कंपनी बाजार नियामक SEBI द्वारा जबरन डीलिस्‍ट की जाती Unlisted Shares क्या होते है है, तो इसे कम्‍पल्‍सरी या अनिवार्य डीलिस्‍ट‍िंग कहते हैं.

यार पूरा मामला समझ में नहीं आ रहा…थोड़ा विस्‍तार से समझाओ… साहिल ने कहा… अतुल ने कहा… डोन्‍ट वरी… मैं बताता हूं. जब कोई कंपनी स्‍वैच्छिक रूप से डीलिस्‍ट‍िंग का ऐलान करती है तो वह रिवर्स बुक बिल्‍ड‍िंग प्रक्रिया के द्वारा आम निवेशकों के पास मौजूद शेयरों को बायबैक करती है. इस प्रक्रिया के द्वारा आम शेयरधारकों को यह आजादी दी जाती है कि वे बायबैक के लिए उचित कीमत तय करें. जिस कीमत पर ज्‍यादा संख्‍या में बिड हासिल होता है, उसे बायबैक के लिए कट ऑफ कीमत मान लिया जाता है.

एक बार जब कट ऑफ कीमत तय हो जाती है, तो कंपनी के सामने दो ही विकल्‍प होते हैं, या तो इसे स्‍वीकार करे या काउंटर ऑफर करे. अगर कंपनी कट-ऑफ कीमत चुन लेती है, तो बायबैक हो जाता है. कंपनी की डीलिस्‍ट‍िंग को तभी सफल माना जाता है, जब आम निवेशकों के शेयरों की खरीद के बाद प्रमोटर्स के शेयरों का हिस्‍सा कंपनी के कुल शेयर कैपिटल का 90% हो जाता है.

उदाहरण से समझें

उदाहरण के लिए साल 2012 में निरमा लिमिटेड ने स्‍वैच्छिक रूप से डीलिस्‍टंग की थी. कंपनी ने माइनॉरिटी शेयरहोल्‍डर्स की 18 फीसदी हिस्‍सेदारी 260 रुपये प्रति शेयर के भाव पर बायबैक कर लिया था. कंपनी ने नए वैल्‍युएशन हासिल करने और FMCG, फार्मा, केमिकल्‍स, सीमेंट, पोर्ट्स, इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर और पावर जैसे अपने तमाम वर्टिकल की नए सिरे से लिस्‍ट‍िंग के लिए यह डीलिस्‍ट‍िंग की थी. बाद में कंपनी ने अपनी सीमेंट इकाई Nuvuco Vistas को एक्‍सचेंजों पर लिस्‍ट कराया.

अनिवार्य डीलिस्‍ट‍िंग के मामले में भी कंपनी के प्रमोटर्स को पब्‍लिक के सभी शेयरों की बायबैक करनी होती है. हालांकि, इसमें किस कीमत पर शेयरों का बायबैक होगा, यह रिवर्स बुक बिल्‍ड‍िंग प्रॉसेस से नहीं बल्कि किसी स्‍वतंत्र मूल्‍यांकन एजेंसी के द्वारा तय किया जाता है. Lanco Infratech और Moser Baer India ऐसे अनिवार्य डीलिस्‍ट‍िंग के कुछ उदाहरण हैं.

ओ हो… अब साहिल की समझ में पूरा मामला आता दिख रहा था.

मनी9 की सलाह

मनी9 की सलाह यह है कि अगर कोई कंपनी अनिवार्य रूप से डीलिस्‍ट होती है तो प्रमोटर्स को अपने शेयर बेचकर आपके लिए इसमें निवेश खत्‍म करना समझदारी भरा कदम होगा. किसी कंपनी के डीलिस्‍ट होने पर रिवर्स बुक बिल्‍ड‍िंग प्रॉसेस क्‍या होता है, इसे समझने के लिए देख‍िए फार्मूला गुरु.

क्या IPO से पहले अनलिस्टेड मार्केट के जरिए किसी स्टॉक में निवेश करना सही है? जानिए एक्सपर्ट की राय

IPO आने से Unlisted Shares क्या होते है पहले भी किसी कंपनी में अनलिस्टेड मार्केट के जरिए निवेश किया जा सकता है. पिछले कुछ समय से इस ट्रेंड में तेजी आई है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि क्या यह निवेश का अच्छा विकल्प है या फिर निवेशकों को इससे बचना चाहिए.

क्या IPO से पहले अनलिस्टेड मार्केट के जरिए किसी स्टॉक में निवेश करना सही है? जानिए एक्सपर्ट की राय

TV9 Bharatvarsh | Edited By: रोहित ओझा

Updated Unlisted Shares क्या होते है on: Sep 12, 2021 | 7:08 AM

शेयर बाजार इस समय रिकॉर्ड हाई पर है. ऐसे में कंपनियां मौके का फायदा उठाकर IPO ला रही हैं. इस Unlisted Shares क्या होते है साल अब तक दर्जनों आईपीओ आ चुके हैं और दर्जनों आईपीओ आने बाकी हैं. कई निवेशक ऐसे भी हैं जो आईपीओ आने से पहले ग्रे मार्केट मार्केट में उस कंपनी का शेयर खरीदते हैं. उन्हें इस बात की उम्मीद रहती है कि रिटर्न बेहतर मिलेगा. क्या यह निवेश का सही रास्ता है, आइए इसके बारे में जानते हैं.

शेयर बाजार के जानकारों का कहना है कि बाजार इस समय रिकॉर्ड हाई पर है. इसके अलावा कई सक्सेफुल आईपीओ पहले ही आ चुके हैं. ऐसे में हाल फिहाल में कई ऐसी कंपनियां भी लिस्ट हुई हैं जो निवेशकों को उम्मीद के मुताबिक रिटर्न देने में निराश रही हैं. इकोनॉमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट में ग्रे मार्केट में निवेश को लेकर आशिका वेल्थ एडवाइजरी के अमित जैन का कहना है कि अगर कोई निवेशक लंबे समय के लिए निवेश करना चाहता है तो ग्रे मार्केट में खरीदारी करना सही विकल्प है.

छह महीने का लॉक-इन पीरियड होता है

नियम के मुताबिक अगर कोई अनलिस्टेड शेयर खरीदता है और वह कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट होती है तो निवेशक को कम से कम छह महीने के लिए निवेश रखना पड़ता है. यह Unlisted Shares क्या होते है लॉक-इन पीरियड होता है. ऐसे में जो निवेशक IPO से पहले उसमें निवेश करते हैं वे कंपनी के लिस्ट होने के छह महीने तक बाहर नहीं निकल सकते हैं. पहले लॉक-इन पीरियड 1 साल का था जिसे सेबी ने घटाकर 6 महीना किया है.

इन कंपनियों में है निवेशकों की दिलचस्पी

आने वाले दिनों में Mobikwik, Paytm, Sterlite Power Transmission जैसी कंपनियों का आईपीओ आने वाला है. ग्रे मार्केट या फिर अनलिस्टेड मार्केट में इन शेयर्स के प्रति निवेशकों में जबरदस्त क्रेज है.

अनलिस्टेड मार्केट में कीमत ज्यादा-कम दोनों हो सकता है

बाजार के जानकारों के मुताबिक, अनलिस्टेड मार्केट में किसी कंपनी के शेयर का भाव आईपीओ के इश्यू प्राइस के मुकाबले ज्यादा होता है. उदाहरण के तौर पर राकेश झुनझुनवाला के निवेश वाली कंपनी Barbeque Nation ग्रे मार्केट में 900 रुपए के स्तर पर ट्रेड कर रहा था, जबकि इस आईपीओ का इश्यू प्राइस 500 रुपए था. इस सप्ताह यह शेयर 1134 रुपए पर बंद हुआ जबकि अभी तक का उच्चतम स्तर 1268 रुपए है.

नजारा का अनलिस्टेड प्राइस काफी कम था

दूसरी तरफ राकेश झुनझुनवाला की निवेश वाली एक और कंपनी Nazara Technologies का आईपीओ आने से पहले यह ग्रे मार्केट में 400 रुपए के स्तर पर मिल रहा था. आईपीओ के लिए इश्यू प्राइस 1100 रुपए के करीब था जबकि इस सप्ताह यह 1785 रुपए के स्तर पर बंद हुआ.

IPO अलॉटमेंट नहीं मिलने के कारण यह ट्रेंड

बाजार के जानकारों का यह भी कहना है कि शेयर मार्केट में लिक्विडिटी काफी है ऐसे में कई निवेशकों को आईपीओ अलॉटमेंट में शेय नहीं मिल पाता है. यही वजह है कि वे ग्रे मार्केट के जरिए इसमें एंट्री लेते हैं. कई निवेशकों को लगता है कि वे बाजार से मिसिंग हो रहा हैं. ऐसे में अपनी मौजूदगी के लिए वे ग्रे मार्केट का सहारा लेते हैं.

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