प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा

उदाहरणार्थ : शरीर की कोशिकाओं में भोजन की कमी आवश्यकता भूख इसका चालक जबकि भोजन इसका प्रोत्साहन है। प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा भूखा व्यक्ति भोजन खाता है तो कोशिकाओं में भोजन की पूर्ति हो जाती है तथा भूख नामक चालक समाप्त हो जाता है।
भौतिकी में शक्ति की परिभाषा क्या है?
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ताकत की परिभाषा
उनके सामने एक निर्दोष के साथ मारपीट की गई और वह चुप रहे। घर लौटते समय वह सोच रहे थे कि काश! वह सुपरमैन होते, तो मजा चखा देते। क्या हिम्मत सुपरमैन की बपौती प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा है? सुपरमैन का किरदार परदे पर साकार करने वाले क्रिस्टोफर रीव कहते हैं कि सुपरमैन एक आम इंसान जैसा होता है, वह मुश्किलों को टालने की बजाय उन्हें हल करने की कोशिश करता है। रीव को घुड़सवारी के दौरान गिरने के बाद लकवा मार गया था, उन्होंने जिंदगी के अंतिम नौ साल व्हील चेयर पर गुजारे। उनके लिए जीवटता, संवेदनशीलता सुपरमैन बनने की अनिवार्य खूबियां थीं। मानवीय मूल्यों से भरा जीवन ही आपको मूल्यवान बनाता है। दुनिया के सारे महान काम के पीछे भावनाओं की प्रबलता रही है। हम भले नजरअंदाज करते हों, लेकिन मदद, सहानुभूति, दया आदि भावनाओं से आप भरे हों, तो आपके भीतर का सर्वश्रेष्ठ आसानी से बाहर आता है। मशहूर उद्यमी किरण मजूमदार शॉ कहती हैं कि वह खुद को सुपर वुमन की तरह महसूस करती हैं और यह ताकत कुछ और नहीं, संवेदनाओं का समन्वय है। वह कहती हैं कि किसी के प्रति आक्रोश उन्हें टिकने की चुनौती देता, अन्याय के प्रति घृणा मूल्यों के प्रति आस्था बढ़ाती और डर उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से जानने का अवसर देता। स्पेनिश न्यूरोलॉजिस्ट डमासो क्रेस्पो इसे थोड़ा भिन्न रूप में समझाते हैं। वह कहते हैं कि मुझे मजबूत बनने के लिए 100 यार्ड रोजाना सैर करनी चाहिए। दौड़कर नहीं, चलकर। लेकिन चलना मुझे किसी दोस्त के साथ होगा। क्रेस्पो के कहने का मतलब है कि दौड़ने से सिर्फ शारीरिक व्यायाम हो सकता है, जबकि चलने से आपकी आंख, कान जैसे अंगों और दोस्त के साथ होने पर आपका भावनात्मक व्यायाम भी होता है। इसीलिए आज आईक्यू से अधिक ईक्यू यानी इमोशनल इंटेलिजेंस महत्वपूर्ण माना जाता है। तो अगली बार आप यह न समझों कि आप बेचारे हैं।
नीरज कुमार तिवारी
अभिधा
शब्द के साथ संयुक्त लोक प्रसिद्ध अर्थ का बोध कराने वाले शब्द की प्रवृत्ति या शक्ति को अभिधा शब्द शक्ति कहते हैं। जैसे ‘ कमल ‘ कहने पर एक फूल विशेष का ‘ चंद्रमा ‘ कहने पर एक आकाश में चमकने वाले ग्रह पिंड का बिंब मन में उपस्थित हो जाता है।
जिस शब्द से प्रचलित अर्थ का बोध हो वहां अभिधा शब्द शक्ति होती है। जैसे – यह कमल का फूल है ( बोलचाल की भाषा में अधिकतर अभिधा शब्द शक्ति का ही प्रयोग किया जाता है )
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लक्षणा
जब शब्द का मुख्य अर्थ बाधित होकर रूढि अथवा प्रयोजन विशेष के कारण मुख्यार्थ से संबंधित किसी अन्य गौण अर्थ की प्रतीति होने लगती है। वहां लक्षणा शब्द शक्ति होती है। जैसे यदि अमूक नाम से व्यक्ति को हम गाय , गधा, बैल , हाथी या शेर की संज्ञा से पुकारते हैं या कहते हैं तो वहां अमुक पशु नाम के स्थान पर उस पशु के लक्षणों का अर्थात पशुत्व का बोध उस अर्थ में सब प्रयोजन होने लगता है। यही अर्थ के साथ प्रतीत होने वाली लाक्षणिकता है लक्षणा शब्द शक्ति है।
शब्द की शक्ति से दूसरे अर्थ की कल्पना होती हो वहां लक्षणा शब्द शक्ति माना जाता है। जैसे – राम तो शेर है यहां शेर का अर्थ सहस से है।
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व्यंजना
जब शब्द का मुख्यार्थ या लक्ष्यार्थ दोनों ही बाधित हो कर किसी अन्य अर्थ को ध्वनित करते हैं। तो वह ध्वन्यार्थ व्यंजना कहलाता है। व्यंजना शब्द और अर्थ दोनों में ही निहित रहती है। जैसे हम किसी व्यक्ति के पूछे कि अमुक स्त्री से तुम्हारा क्या संबंध है ? और वह कहे कुछ नहीं लेकिन उसका कहने का तरीका उसकी चितवन उसका मुस्कुराना आदि स्पष्ट कर देता है कि उसके संबंधों में आत्मीयता और प्रेम निहित है। कथन में आत्मीयता और प्रेम का ध्वनि तो होना ही व्यंजना शब्द शक्ति है।
यह शब्द व्यंजना और आर्थी व्यंजना दो प्रकार की होती है। यहां संक्षिप्त विवरण केवल शब्द की प्रवृतियों या उसकी शक्तियों को प्राथमिक दृष्टि से समझना मात्र था। साहित्य में रस और ध्वनियों की प्रासंगिकता गद्य और पद्य दोनों में ही होती है लेकिन कविता में इन दोनों के अतिरिक्त अलंकार छंद और बिम्ब का प्रयोग उसमें विशिष्टा लाता है ।
नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ
नेतृत्व से आशय किसी व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों का मार्गदर्शन करता है अर्थात् विभिन्न व्यक्तियों या व्यक्तियों के किसी समूह को निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अग्रसर करता है। वास्तव में यदि देखा जाए तो नेतृत्व की प्रभावशीलता पर ही प्रबन्ध की सफलता आधारित होती है।
कुण्ट्ज तथा ओ ' डोनेल के अनुसार , " नेतृत्व व्यक्ति को प्रभावित करने की कला अथवा प्रक्रिया है , जिससे कि समूह के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वे स्वेच्छापूर्वक कार्य करने लगे। "
न्यूनर एवं कीलिंग के अनुसार , " नेतृत्व कर्मचारियों को अभिप्रेरित एवं निर्देशित करने से सम्बन्धित है , जिससे उपक्रम की रीतियों , कार्यक्रमों और योजनाओं को सरलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सके। "
एफ. जी. मूरे के अनुसार , " नेतृत्व अनुयायियों को नेता की इच्छानुसार क्रियाएँ करने के लिए तैयार करने की योग्यता है। "
नेतृत्व के लक्षण अथवा विशेषताएँ
नेतृत्व एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों को प्रभावित करती है , जिससे वे वांछित दिशा में उत्साहपूर्वक कार्य कर सकें। नेतृत्व एक ऐसा कार्य है जो नेताओं द्वारा विभिन्न स्तरों पर , विभिन्न दिशाओं एवं परिस्थितियों में संगठन की आवश्यकता के अनुरूप किया जाता है।
नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं -
(1) अनुयायियों का होना –
नेतृत्व की प्रथम विशेषता यह है कि नेता के अनुयायी होने चाहिए तथा अनुयायियों को नेता का नेतृत्व स्वीकार होना चाहिए।
(2) निरन्तरता —
नेतृत्व एक गतिशील प्रक्रिया है। प्रत्येक संगठन की स्थापना से लेकर समापन तक नेतृत्व की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है।
(3) चरित्र व आचरण-
नेता के भाषण अथवा उसके लेख अनुयायियों को उतना प्रभावित नहीं करते जितना कि उसका चरित्र व आचरण। उसके चरित्र व आचरण का अनुयायियों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
कुशल नेतृत्व के गुण
कुशल नेतृत्व उपक्रम की आधारशिला है। नेतृत्व पर ही उपक्रम की सफलता निर्भर करती है। अत: एक नेता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है -
(1) उत्तम स्वास्थ्य-
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। नेता को अनेक कार्यों एवं उत्तरदायित्वों को निभाना पड़ता है। इसके लिए आवश्यक है कि उसका स्वास्थ्य उत्तम हो।
(2) स्फूर्ति तथा सहिष्णुता-
स्फूर्ति का अर्थ है-चैतन्यता अथवा सजगता। सहिष्णुता का अर्थ है — कठिनाई के समय धैर्य से काम लेना। एक अच्छे नेता में इन दोनों गुणों का होना आवश्यक है , क्योंकि इनके द्वारा ही वह अधीनस्थों एवं अनुयायियों का नेतृत्व करने में सक्षम हो पाता है।
(3) निर्णय लेने की क्षमता-
उपक्रम में निर्णय का बहुत महत्त्व है , क्योंकि इसा पर उपक्रम का भविष्य निर्भर होता है और सफल नेता वही है जो परिस्थिति पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय लेने की क्षमता रखता हो।
नेतृत्व का महत्त्व
प्रबन्ध का वह साधन है जिसके बिना संगठन निष्क्रिय रहता है। यह एक ऐसी प्रेरक शक्ति है जो मानवीय साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग कर उपक्रम को प्रगति की ओर ले जाता है तथा पग-पग पर आने वाली कठिनाइयों का दृढ़तापूर्वक सामना करता है। जॉन जी. ग्लोबर का तो यह कहना है कि " व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने में अकुशल नेतृत्व जितना उत्तरदायी है , उतना अन्य कोई कारण नहीं है। "
व्यवसाय प्रबन्ध में नेतृत्व के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं -
(1) अभिप्रेरणा का स्त्रोत-
नेतृत्व अभिप्रेरणा का स्रोत है। मानवीय सम्बन्धों का विकास कुशल नेतृत्व के द्वारा ही सम्भव है। नेता व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों को उभारता है और उन्हें अधिक कार्य करने हेतु प्रेरित करता है।
(2) सहयोग प्राप्ति की आधारशिला –
नेतृत्व विभिन्न साधनों के माध्यम से अपने सहयोगियों और अनुयायियों का सहयोग प्राप्त करता है। कुशल नेतृत्व के अभाव में कर्मचारियों में द्वेष की भावना का विकास होता है और छोटी बातों को लेकर आपसी विवाद उठ खड़े होते हैं।
अभिप्रेरणा अर्थ ,परिभाषा ,प्रकार
( Motivation) लैटिन भाषा के शब्द मोटम (Motum) या मोवेयर (Moveers) से बना है, जिसका अर्थ है 'To Move' अर्थात गति प्रदान करना। इस प्रकार अभिप्रेरणा वह कारक है, जो कार्य को गति प्रदान करता है। । अभिप्रेरणा के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाओं पर चर्चा करते हैं।
वुडवर्थ : "अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समूह है, जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।"
गैट्स व अन्य के अनसार, "अभिप्रेरणा प्राणी के भीतर शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दशा है, जो उसे विशेष प्रकार की क्रिया करने के लिए प्रेरित करती है।"
मैस्लो के अनुसार : मैस्लो दो प्रकार के अभिप्रेरक बताता है
(अ) जन्मजात अभिप्रेरक :
(ब) अर्जित अभिप्रेरकः
(अ) स्वभाविक अभिप्रेरक :
(ब) कृत्रिम अभिप्रेरक :
व्यवहार को नियंत्रित करने, पोत्साहित करने अथवा वांछित दिशा देने के लिए स्वभाविक अभिप्रेरकों के पूरक के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। उदाहरणार्थ : प्रशंसा, पुरस्कार, दण्ड आदि।
गरेट के अनुसार :
(अ) जेविक अभिप्रेरक :
जीव की जैविक आवश्यकताओं के कारण होती है। इसमें मुख्यतया सवग आते है। जैसे-प्रेम, क्रोध,भय, ईर्ष्या आदि।
(ब) मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरक :
व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न होते है। इसमें मूल प्रवृत्तियां आती हैउदाहरणार्थ : रचनात्मकता, जिज्ञासा, पलायन आदि।
(स) सामाजिक अभिप्रेरक :
अभिप्रेरणा चक्र : मनोवैज्ञानिकों ने अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए अभिप्रेरणा चक्र का प्रतिपादन किया, जिसके तीन सोपान होते हैं, यह निम्नवत है
की कमी या अति किसी कारण से उत्पन्न हो जाये तो इसे आवश्यकता कहा जाता है। उदाहरणार्थ : प्यास लगने पर व्यक्ति के शरीर की कोशिकाओं में पानी की कमी हो जाती प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा है, पानी की यह कमी आवश्यकता है।
2. प्रणोद/चालक/अंतर्नोद : यह अभिप्रेरणा चक्र का दूसरा सोपान है। जब प्राणी में आवश्यकता उत्पन्न होती है तो उसमें क्रियाशीलता बढ़ जाती है, यह क्रियाशीलता या तनाव ही चालक कहलाता है। उदाहरणार्थ-शरीर की कोशिकाओं में पानी की कमी आवश्यकता एवं प्यास इसका चालक है।
अभिप्रेरणा के सिद्धांत :
अभिप्रेरणा के सिद्धांत इस बात की व्याख्या करते हैं कि कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यवहार को क्यों करता है, उसके व्यवहार के लिए कौन से कारक उत्तरदायी है? अभिप्रेरणा के प्रमुख सिद्धांत निम्न प्रकार से हैं
मनोवैज्ञानिक विलियम मैक्डुगल है। विलियम मैक्डुगल कहता है— मूल प्रवृत्तियाँ ही व्यक्ति के व्यवहार का उद्गम होती है। विलियम मैक्डुगल 14 मूल-प्रवृत्तियाँ बताई है तथा प्रत्येक मूल-प्रवृत्ति से एक संवेग जुड़ा हुआ बताते है।
2.मनोविश्लेषण सिद्धांत : इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रायड़ द्वारा किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार मानव व्यवहार को मूल-प्रवृत्तियां तथा अचेतन मन प्रेरित करता है। फ्रायड़ दो तरह की मूल-प्रवृत्तियाँ बताता
(i) जीवन से संबेधित (ईरोज) : निर्माणात्मक कार्यो की प्रवृत्ति। (ii) मृत्यु से संबंधित (थनैटॉस) : विध्वंसात्मक कार्यो की प्रवृत्ति।