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बाजार अर्थव्यवस्था क्या है

बाजार अर्थव्यवस्था क्या है

अर्थव्यवस्था का परिचय

अर्थव्यवस्था का परिचय, अर्थव्यवस्था परिभाषा, अर्थव्यवस्था का अर्थ क्या है, अर्थव्यवस्था के प्रकार, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। economics in hindi for upsc & pcs notes.

Table of Contents

अर्थव्यवस्था (Economy)

अर्थशास्त्र (Economics)

अर्थशास्त्र (Economics) दो शाब्दों से मिलकर बना है अर्थ + शास्त्र, अर्थ का मतलब है धन से संबंधित एवं शास्त्र का अर्थ है अध्ययन अतः धन से संबंधित अध्ययन को अर्थशास्त्र कहते हैं। अर्थशास्त्र का पिता एडम स्मिथ को माना जाता है, इनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम The Wealth of Nations था।

अर्थशास्त्र एक विषय है जिसमें हम आर्थिक सिद्धान्तों को पढ़ते हैं और आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करते हैं साथ ही दुर्लभ संसाधनों से मूल्यवान वस्तुओं के उत्पादन तथा उसके वितरण का अध्ययन करते हैं ताकि समाजिक आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।

अर्थव्यवस्था- अर्थव्यवस्था, अर्थशास्त्र का व्यवहारिक रूप है अर्थशास्त्र के अध्ययन को जब व्यवहारिक रूप से उपयोग में लाया जाता है तब उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं। अर्थव्यवस्था एक क्षेत्र है जहां आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों का निष्पादन किया जाता है। जब हम किसी देश को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित करते हैं, तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं।

अर्थव्यवस्था के प्रकार (Type of economy)

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy)

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन के साधनों पर बाजार(निजी) का नियंत्रण होता है। मूल्य का निर्धारण, बाजार के आधार पर मांग व पूर्ति पर निर्भर करता है इसे बाजार मूल्य प्रणाली भी कहा जाता है।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का प्रभुत्व होता है। सरकारी हस्तक्षेप सीमित एवं प्रतिस्पर्धा की नीति को अमल में लाया जाता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विशेषज्ञीकरण दिखता है। सरकार नियामक के रूप में केवल नियम बना सकती है।

इस अर्थव्यवस्था में सुचारू नेतृत्व तो होता है परन्तु पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में सदैव उत्पादन होता है, जिससे मंदी एवं आर्थिक विषमता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अधिकतर विकसित देश इसे अपनाते हैं।

2. समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist Economy)

समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संसाधनों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण होता है। यहां पर मूल्य के निर्धारण में सरकार का हस्तक्षेप होता है तथा सरकार ही मांग व पूर्ति को नियंत्रित करती है इस तरह की प्रणाली को प्रशासनिक मूल्य प्रणाली भी कहा जाता है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व होता है तथा नगण्य प्रतिस्पर्धा की नीति को अपनाया जाता है। समाजवाद में एकाधिकार दर्शन होते हैं। सरकार ही तीनों भूमिका नियामक, उत्पादनकर्ता एवं आपूर्तिकर्ता के रूप में होती है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में उत्पादन के स्थान पर वितरण के रखा जाता है जिससे मुद्रास्फीति एवं राजकोषीय घाटा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में नेतृत्व का अभाव होता है।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)

मिश्रित अर्थव्यवस्था पूंजीवादी एवं समाजवादी का मिश्रण होती है। यहां कुछ आर्थिक क्रियाओं बाजार अर्थव्यवस्था क्या है पर बाजार एवं कुछ पर सरकार का नियंत्रण होता है। मूल्य निर्धारण बाजार एवं सरकार दोनो द्वारा ही किया जाता है। सरकार नियामक के रूप में कार्य करती है। वर्तमान समय में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था लागू है। ये अर्थव्यवस्था कम विकसित और विकासशील देशों में अधिक प्रचलित है।

4. बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy)

बन्द अर्थव्यवस्था, जिसमें आयात (Import) एवं निर्यात (Export) नहीं होता है बन्द अर्थव्यवस्था कहलाती है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है, जब कोई देश अपने में ही इतना सक्षम हो कि उसे न कोई निर्यात करना पड़े और न ही आयात करना पड़े।

इस तरह की बन्द अर्थव्यवस्था को वास्तविक रूप में लागू कर पाना किसी भी देश के लिए व्यवहारिक नहीं है परन्तु फिर भी कुछ ऐसे देश है जहां आयात एवं निर्यात नगण्य के बराबर है यहां लगभग बंद अर्थव्यवस्था पायी जाती है। जैसे – नॉर्वे, ब्राजील।

5. खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy)

खुली अर्थव्यवस्था में समुचित रूप से आयात एवं निर्यात होता है 1990 के बाद समाजवादी अर्थव्यवस्था का पतन हुआ और खुली अर्थव्यवस्था ही एक मात्र विकल्प बचा। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि खुली अर्थव्यवस्था एक बेहतर विकल्प है जिसमें एक ओर उपभोक्ता को बेहतर विकल्प मिलते हैं और दूसरी ओर पिछड़े देशों को तकनीकी ज्ञान प्राप्त बाजार अर्थव्यवस्था क्या है होता है। लेकिन खुली अर्थव्यवस्था भी खतरों से मुक्त नहीं क्योंकि इससे कमजोर देशों के बाजार पर विकसित देशों का कब्जा हो जाने का भय बना रहता है जिससे धन का निर्गमन होने लगता है।

आर्थिक वस्तु एवं सेवा- जब सामान्य वस्तु एवं सेवा में उत्पादन की प्रक्रिया जुड़ जाए साथ ही उनमें बाजार मूल्य भी जुड़ जाये तो वह आर्थिक वस्तु बन जाती है। जिस भी वस्तु अथवा सेवा की उपयोगिता(मांग) जितनी ज्यादा होगी उसका बाजार मूल्य उतना ही अधिक होगा।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र (Sectors of Economy)

1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)

प्राथमिक क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जहां प्राकृतिक संसाधनों को कच्चे माल के तौर पर प्राप्त किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र में नैसर्गिक उत्पादन होता है तथा ऐसी वस्तुओं को प्राथमिक वस्तुएँ कहते हैं। उदाहरण के लिए कृषि उत्पाद, वानिकी, मत्स्य उद्योग आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)

जहां प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को कच्चे माल की तरह उपयोग कर द्वितीयक वस्तु या पक्का माल तैयार किया जाता है, वह द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है। उदाहरण के लिए उद्योग, रेडीमेड कपड़ा, निर्माण, बिजली उत्पादन आदि।

3. तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Section)

इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां वस्तुएँ नहीं बल्कि सेवा का उत्पादन होता है। इसे ‘बंद कमरे की गतिविधियां’ के नाम से भी जाना जाता है, जैसे – संचार क्षेत्र, परिवहन, बीमा, बैंकिंग, शिक्षा आदि।

बाजार अर्थव्यवस्था और मिश्रित अर्थव्यवस्था के बीच का अंतर

अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था को समझे आसान भाषा में​ || Economics

बाजार अर्थव्यवस्था बनाम मिश्रित अर्थव्यवस्था

कभी-कभी सोचा कि कुछ बाजारों में कारोबार दूसरों के विपरीत , जहां सख्त सरकारी विनियमन और हस्तक्षेप इन को रोकता है? संयुक्त राज्य अमेरिका में एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है क्योंकि उनके पास निजी स्वामित्व वाली कंपनियों और बाजार में सरकार की प्रमुख भूमिका है।

बाजार अर्थव्यवस्था

अर्थशास्त्र के अनुसार बाजार अर्थव्यवस्था एक आर्थिक प्रणाली का संदर्भ देती है जिसमें संसाधनों का आवंटन बाजार में आपूर्ति और मांग के द्वारा निर्धारित किया जाता है। उन्होंने कहा कि कुछ देशों में बाजार स्वतंत्रता पर सीमाएं हैं, जहां सरकार प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए मुक्त बाजारों में हस्तक्षेप करती है, जो अन्यथा नहीं हो सकती।

मिश्रित अर्थव्यवस्था

मिश्रित अर्थव्यवस्था बाज़ार की अर्थव्यवस्था को संदर्भित करती है जहां दोनों निजी और सार्वजनिक उद्यम आर्थिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। ई। जी। अमेरिका में एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है, क्योंकि दोनों निजी और सरकारी कारोबार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अर्थव्यवस्था निर्माता को लाभ देती है, जैसा कि व्यवसाय में जाना है, क्या उत्पादन और बिक्री करना है, कीमतों को भी सेट करना है भले ही बाजार अर्थव्यवस्था क्या है व्यापार मालिकों ने कर का भुगतान किया हो, वे इसे सामाजिक कार्यक्रमों, अवसंरचना लाभ और अन्य सरकारी सेवाओं के माध्यम से लाभ के रूप में वापस प्राप्त करते हैं। लेकिन फिर भी व्यापारिक लोगों को उत्पादों के लिए अपने स्वयं के बाज़ार खोजने की जरूरत है। और आगे वे हालांकि वे कर भुगतान करते हैं पर नियंत्रण नहीं है।

बाजार अर्थव्यवस्था और मिश्रित अर्थव्यवस्था के बीच क्या अंतर है?

· मार्केट इकोनॉमी में उपभोक्ताओं और व्यवसायों को क्या खरीदना है और क्या उत्पादन करना है इसके बाजार अर्थव्यवस्था क्या है बारे में निशुल्क निर्णय ले सकते हैं। जबकि मिश्रित अर्थव्यवस्था के भीतर उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियां नि: शुल्क निर्णय के लिए सीमित हैं और दोनों निजी और सरकारी हस्तक्षेप दृश्यमान हैं।

· मिश्रित अर्थव्यवस्था के विरोध में बाजार अर्थव्यवस्था में सरकार की कम हस्तक्षेप है।

निष्कर्ष> बाजार की अर्थव्यवस्था में बढ़ती दक्षता अलग प्रतियोगिता के बीच मौजूद है क्योंकि मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों में कड़ी मेहनत कर रहे हैं, इसलिए राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि हुई है।

आज ज्यादातर औद्योगिक देशों में मिश्रित अर्थव्यवस्थाएं हैं जहां सरकार निजी कंपनियों के साथ अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाती है।

बाजार अनुसंधान और बाजार खुफिया के बीच का अंतर | बाजार अनुसंधान बनाम बाजार खुफिया

बाजार अनुसंधान और बाजार खुफिया के बीच अंतर क्या है? मार्केट इंटेलिजेंस विपणन अनुसंधान की तुलना में एक व्यापक अवधारणा है बाजार अनुसंधान और बाजार खुफिया, बाजार अनुसंधान बनाम बाजार खुफिया, बाजार अनुसंधान परिभाषा, बाजार खुफिया परिभाषा, बाजार अनुसंधान, बाजार खुफिया, बाजार अनुसंधान उद्देश्य, बाजार खुफिया उद्देश्य, तुलनात्मक और बाजार अनुसंधान और बाजार खुफिया मतभेद की तुलना में

नियोजित अर्थव्यवस्था और बाजार अर्थव्यवस्था के बीच अंतर | नियोजित अर्थव्यवस्था बनाम बाजार अर्थव्यवस्था

मिश्रित अर्थव्यवस्था और बाजार समाजवाद के बीच अंतर

मिश्रित अर्थव्यवस्था के बीच का अंतर एक मिश्रित अर्थव्यवस्था एक आर्थिक व्यवस्था पर आधारित है जो पूंजीवादी और समाजवादी मॉडल के तत्वों को जोड़ती है। एक मिश्रित आर्थिक प्रणाली में:

एक अर्थव्यवस्था की केंदीय समस्याएँ|आर्थिक समस्या क्या हैं ?|Central Problems of an economy

मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं। कोई भी मनुष्य अपनी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर सकता है। किसी समाज के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को किसी निश्चित समय में पूर्ण से संतुष्ट नहीं किया जा सकता।

सिमित/दुर्लभ सधन

मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाली अधिकतर वस्तुएँ तथा सेवाएँ सिमित होती हैं। इन वस्तुओं को दुर्लभ इसलिए कहा जाता है क्यूँकि इनकी माँग इनकी पूर्ति से अधिक होती है , भले ही इनकी कीमत कितनी हो।

वैकल्पिक प्रयोग

आर्थिक समस्या का अन्य कारण सिमित संसधनों के वैकल्पिक प्रयोग हैं। उदाहरण के लिए , दूध का विभिन्न कार्यों का प्रयोग होता हैं। जैसे - पनीर ,आइसक्रीम या मिठाई बनाने में प्रयोग किया जाता है।

एक अर्थव्यवस्था की केंदीय समस्याएँ

प्रत्येक अर्थव्यवस्था को ,चाहे वह धनि हो या निर्धन ,विकसित हो या अविकसित ,तीन केन्द्रीय समस्याओं का सामान करना पड़ता है।

i ) क्या उत्पादन किया जाए ?

ii ) कैसे उत्पादन किया जाए ?

iii) किसके लिए उत्पादन किया जाय ?

क्या उत्पादन किया जाए ?

इस समस्या के दो पहलू हैं :

i ) क्या उत्पादन किया जाए

ii ) कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए

・प्रत्येक अर्थव्यवस्था की सबसे पहली समस्या यह है की कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए जिससे लोगों की अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जा सके।

i ) एक तो अर्थव्यवस्था को यह निर्णय लेना पड़ता है की कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए। उदाहरण के लिए ,कौन -सी उपभोक्ता वस्तुओं जैसे - चीनी ,कपड़ा , गेहूँ घी आदि का उत्पादन किया जाए तथा कौन -सी पूँजीगत वस्तुओं जैसे -मशीनों ,आदि का उत्पादन किया जाए इसी प्रकार यह चुनाव करना पड़ता है की कौन -सी युद्धकालीन वस्तओं जैसे - बंदूकों ,तोपों का उत्पादन किया जाए तथा कौन -सी शांतिकालीन वस्तुओं जैसे -ब्रेड ,मक्खन का उत्पाद किया जाए।

ii ) जब एक अर्थव्यवस्था यह निर्णय लेती है की कौन -सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करना है तो उसे यह निर्णय लेना पड़ता है की उन वस्तुओं का कीतनी मात्रा बाजार अर्थव्यवस्था क्या है में उत्पादन किया जाए। यह निर्णय भी लेना पड़ता है कि उपभोक्ता वस्तुओं का कितना उत्पाद किया जाए तथा पूँजीगत वस्तुओं का कितना उत्पाद किया जाए।

कैसे उत्पादन किया जाए ?

एक अर्थव्यवस्था की दूसरी मुख्य समस्या है कि वस्तुओं का उत्पादन कैसे किया जाए या उत्पादन की व्यवस्था कैसे की जाए इस समस्या का संबंध उत्पादन की तकनीक का चुनाव करने से है।

उदाहरण: कपड़े का उत्पादन हथकरघों सहायता से हो सकता है अथवा आधुनिक मशीनों द्वारा किया जा सकता है।क्योंकि प्रत्येक समाज में दो तकनीक उपलब्ध है।

i) श्रम प्रधान तकनीक

ii) पूँजी प्रधान तकनीक

अतः समस्या उत्पन्न होती है कि देश में किन तकनीको का प्रयोग कितनी मात्रा में किया जाए

किसके लिए उत्पादन किया जाय ?

• सीमित संसाधनों के कारण कोई भी अर्थव्यवस्था पर समाज के सभी वर्गों के लिए वांछित मात्रा वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकती है।

• क्योंकि प्रत्येक अर्थव्यवस्था में समाज के दो वर्ग होते है:

• यदि उत्पादन में निर्धन वर्ग के लिए किया जाता है तो सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन मिलता है। अथवा समानता को बढ़ावा मिलता है।

• अगर निर्धन वर्ग के लिए उत्पादन करने पर उत्पादकों के लाभों में कमी होगी ।

• कम लाभ का अर्थ है निम्न निवेश अर्थात सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि निम्न होगी ।

• इसके कारण अर्थव्यवस्था आने वाले लंबे समय तक पिछड़ी हुई रहेगी।

• इसलिए यहाँ समस्या उत्पन्न होती है कि किस वर्ग के लिए उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में किया जाए।

विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय समस्याओं का समाधान

(Solution of Central Problems in different Economies)

• विभिन्न अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं का अलग अलग तरीके से समाधान करती है।

i) बाजार अर्थव्यवस्था

ii) केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था

iii) मिश्रित अर्थव्यवस्था

बाजार अर्थव्यवस्था

बाजार अर्थव्यवस्था एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था होती है। इसका अर्थ है कि यहाँ उत्पादकों को यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है कि क्या, कैसे तथा किसके लिए उत्पादन किया जाए। यह निर्णय वे इस आधार पर लेते हैं यह निर्णय बाजार पूत एवं मांग शक्तियों के आधार पर लिए जाते हैं।

केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था

केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था में ' क्या, कैसे और किसके लिए' उत्पादन किया जाए संबंधित निर्णय देश की सरकार द्वारा नियुक्त किसी केंद्रीय अधिकारी द्वारा लिए जाते हैं।

• वे सभी निर्णय अधिकतम सामाजिक कल्याण प्राप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं।

• इस प्रकार की अर्थव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना नहीं होता है। ऐसी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, जो केंद्रीय अधिकारी के विचार में समाज के लिए सबसे अधिक लाभदायक हो।

मिश्रित अर्थव्यवस्था

• मिश्रित अर्थव्यवस्था में बजा अर्थव्यवस्था तथा केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था दोनों के गुण सम्मिलित होते हैं।

• अर्थव्यवस्था में क्या कैसे और किस के लिए उत्पादन किया जाए संबंधित निर्णय बाजार शक्तियों तथा सामाजिक कल्याण दोनों के आधार पर ली जाती है।

उत्पादन संभावना वक्र

(Production Possibility Curce (PPC)]

उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दिए हुए संसाधनों तथा तकनीक द्वारा दो वस्तुओं के उत्पादन की वैकल्पिक संभावनाओं को प्रकट करता हैं।

उत्पादन संभावना वक्र की मान्यताओं

i) संसाधन दिए हुए हैं

ii) दिए हुए संसाधनों का पूर्ण एवं कुशल प्रयोग होता है

iii) उत्पादन बाजार अर्थव्यवस्था क्या है तकनीक स्थिर रहती है।

तालिका : उत्पादन संभावना अनुसूची

ii) बिंदु A द्वारा व्यक्त किया जाता है कि पहले उत्पादन संभावना 100 लाख टन गेहूं और कोई कपड़ा नहीं है।

v) इन सभी बिंदुओं को मिला देने से हमें AE वक्र प्राप्त होता है जिससे उत्पादन संभावना वक्र कहा जाता है।

अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं यह कितने प्रकार की होती है?

अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं

अर्थव्यवस्था वह संरचना है, जिसके अंतर्गत सभी आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता है। उत्पादन उपभोग व निवेश अर्थव्यवस्था की आधारभूत गतिविधियाँ है। अर्थव्यवस्था की ईकाईयाँ मानव द्वारा गठित होती है। अतः इनका विकास भी मानव अपने अनुसार ही करता है।

आय का सृजन उत्पादन प्रक्रिया में होता है। उत्पादन प्रक्रिया द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं पर आय व्यय किया जाता है। आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु व्यय करना आवश्यक है जिसे अर्थशास्त्र में उपभोग क्रिया कहते है। जब उपभोग क्रिया अधिक होती है तो उत्पादन भी अधिक करना आवश्यक है उत्पादन करने के लिये अधिक धन्य व्यय करने की आवश्यकता होती है। इस व्यय को विनियोग कहते हैं। जिन क्षेत्रों में उत्पादन उपभोग व निवेश की क्रिया की जाती है, उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं।

अर्थव्यवस्था की परिभाषा

ए.जे. ब्राउन के अनुसार, ‘‘अर्थव्यवस्था एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा लोग जीविका प्राप्त करते हैं।’’ जिस विधि से मनुष्य जीविका प्राप्त करने का प्रयास करता है वह समय तथा स्थान के सम्बन्ध में भिन्न होती है।

अर्थव्यवस्था के प्रकार

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था:- ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें निजी क्षेत्रों व बाजार की भूमिका प्रभावकारी होती है, आर्थिक गतिविधियों के समस्त निर्णय जैसे कितना उत्पादन किया जाए किसका किया जाए कैसे किया जाए। निजी क्षेत्र द्वारा लिए जाते है दूसरे शब्दों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था बाजार की शक्तियों अर्थात मांग एवं पूर्ति द्वारा संचालित होती है जिसका एकमात्र उद्देश्य लाभ प्राप्त करना है उदाहरण के लिए अमेरिका, कनाडा, मेक्सिकों की अर्थव्यवस्थाएँ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है।

2. समाजवादी अर्थव्यवस्था- ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें आर्थिक क्रियाओं का निर्धारण एवं नियंत्रण केन्द्रीय इकाई या राज्य के द्वारा होता है इसीलिए इसे नियंत्रित अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है यहाँ बाजार के कारकों की भूमिका सीमित होती है, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था जहाँ उपभोग एवं उत्पादन का निर्धारण करता है वहीं समाजवादी अर्थव्यवस्था उत्पादन एवं उपभोग का निर्धारण करती है, वहीं दूसरी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लाभ से प्रेरित होती है, जबकि समाजवादी अर्थव्यवस्था कल्याणकारी राज्य की संकल्पना पर आधारित होती है उदाहरण के लिए चीन, वियतनाम, उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्थाएँ।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था- एक ऐसी प्रणाली जिसमें बाजार यंत्र के संचालन के साथ राज्य की भूमिका भी साथ-साथ चलें मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के आवश्यक निर्णय राज्य के द्वारा लिए जाते हैं जबकि संबंधित निर्णय बाजार द्वारा लिए जाते हैं, मिश्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत पूंजीवादी अर्थव्यवस्था तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं उदाहरण के लिए भारत नार्वे और स्वीडन की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था का उदाहरण है।

मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने दी है भारत को उम्मीद: सोरमन

फ्रांस के अर्थशास्त्री गाय सोरमन का मानना है कि पिछले दो दशक के आर्थिक उदारीकरण से भारत के गरीबों में जिंदगी सुधारने की उम्मीद जगी है। मुक्त अर्थव्यवस्था के कट्टर समर्थक माने जाने वाले प्रसिद्ध लेखक.

मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने दी है भारत को उम्मीद: सोरमन

फ्रांस के अर्थशास्त्री गाय सोरमन का मानना है कि पिछले दो दशक के आर्थिक उदारीकरण से भारत के गरीबों में जिंदगी सुधारने की उम्मीद जगी है।

मुक्त अर्थव्यवस्था के कट्टर समर्थक माने जाने वाले प्रसिद्ध लेखक सोरमन को हालांकि इस बात का क्षोभ है कि उदारीकरण के बाद भारतीय अफसरशाही इसकी रफ्तार को कायम नहीं रख सकी। अफसरशाही ने इसके रास्ते में कई तरह की बाधाएं खड़ी कर दीं।

अपनी नई पुस्तक 'इकोनॉमिक्स डज नॉट लाई' को जारी करने के लिए सोरमन भारत आए हुए हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन फुल सर्किल ने किया है। सोरमन ने कहा कि मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की सफलता के लिए कई तरह के संस्थागत सुधार एक के बाद एक किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि उदारीकरण ने भारत के लिए कई अच्छी चीजें की हैं।

सोरमन ने कहा कि इस देश में अफसरशाही आज भी पुराने भारत की है। यह पुराने से आधुनिक नहीं होने देना चाहती। कुछ ऐसा ही तकनीकी शिक्षा देने के मामले में है। इन आलोचनाओं की उदारीकरण के बाद भारत में भारी असमानता की स्थिति पैदा हो गई है, सोरमन ने कहा वह गरीबी को लेकर काफी संवदेनशील हैं। पर इस सवाल का जवाब फिर पुरानी प्रणाली में जाना नहीं है, बल्कि वर्तमान व्यवस्था में सुधार करना है।

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